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टिप्पणियाँ

बेसेंट जैसे लोग साम्प्रदायिक मतभेदोंके बावजूद स्वतन्त्रता प्राप्त करनेमें लगे हैं। इस तरह दोनों व्यक्तियोंके लिए अवकाश है जो मतभेदोंके होनेपर भी स्वतन्त्रता प्राप्त करनेका प्रयत्न करते हैं उनके लिए भी और जो स्वतन्त्रताका मार्ग प्रशस्त करनेके लिए मतभेदोंको मिटाना चाहते हैं, उनके लिए भी।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २३-७-१९२५
 

२५९. टिप्पणियाँ

"अलवर हत्याकाण्ड"

लोग जिसे 'अलवर हत्याकांड' कहते हैं उसके सम्बन्धमें कलकत्तेकी कार्यसमितिमें श्री जमनालाल बजाजने एक प्रस्ताव उपस्थित किया था कि एक जाँच समिति नियत की जाये। बरसोंसे कांग्रेसकी यह परम्परा चली आई है कि वह रियासतोंके भीतरी मामलोंमें हस्तक्षेप न करे। कार्य समितिके सदस्योंने अनुभव किया कि यह परम्परा अच्छी है और इसको तोड़ना नादानी होगी। तब श्री जमनालालजीने इसपर जोर न दिया। फिर भी मैंने उनसे यह कहा था कि मैं 'यंग इंडिया' में इस प्रश्नकी चर्चा करूँगा। और अपनी इस निजी रायके कारण बताऊँगा कि क्यों कांग्रेसको रियासतोंके भीतरी मामलोंमें दखल न देना चाहिए। यदि कोई चाहे तो इसे समय-साधकता या चतुराई भी मान सकता है। इसमें ये दोनों बातें हैं ही; शायद इससे कुछ अधिक भी है। यह बात साफ कुबूल कर लेनी होगी कि खुद ब्रिटिश इलाकेमें कांग्रेसको अपने आदेशोंका पालन करवानेका जितना अधिकार है उतना रियासतोंमें उसके पास नहीं है। इसलिए दूरदर्शिता कहती है कि जहाँ कार्य यदि नादानी नहीं तो व्यर्थका प्रयत्न हो, वहाँ अकर्म ही श्रेष्ठ होता है। पर यदि अकर्म दूरदर्शितापूर्ण हो तो वह लाभकारी भी है। कांग्रेस रियासतोंको दिक करना नहीं चाहती। वह तो उनकी मदद करना चाहती है। वह उनको नष्ट नहीं करना चाहती, उनमें सुधार करना चाहती है और कांग्रेस अपनी इस सदिच्छाका परिचय कुछ भी हस्तक्षेप न करके देती है।

परन्तु कांग्रेसके अलग रहनेका यह अर्थ नहीं है कि कांग्रेसजन अपनी तरफसे कुछ न करें। जिनका रियासतोंसे कुछ भी सम्बन्ध है वे अवश्य ही अपने प्रभावका उपयोग करेंगे। स्थानीय समितियाँ दुःखी लोगोंकी सहायता और निर्देशन कर सकती हैं, जहाँतक राजसत्तासे उनका संघर्ष न आये। कांग्रेस वहाँ किसी कांग्रेसी कार्योंपर अंकुश भी नहीं रखती और न वह उन्हें नियमित ही करती है। क्योंकि जब वे कोई काम वहाँ करते हैं तब कांग्रेसीकी हैसियतसे नहीं करते हैं अतः उन्हें कांग्रेसको बीचमें नहीं लाना चाहिए।

तब क्या रियासतोंकी प्रजा कांग्रेससे जो कि एक राष्ट्रीय संस्था होनेका दावा करती है, किसी तरहकी सहायताकी उम्मीद न करे? मुझे खेद है कि इसका उत्तर