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४. भविष्यमें आप भारतके लिए जो संयुक्त कांग्रेस बनाना चाहते हैं उसमें आपकी कताई-सदस्यता और अबतक आंग्ल भारतीयोंको कांग्रेसमें शामिल न किये जानेकी बातको ध्यानमें रखते हुए आप आंग्ल भारतीयोंके प्रतिनिधियोंको किस आधारपर चुनेंगे?

हाल ही में जो परिवर्तन तजवीज हुआ है उसके अनुसार सूतकी बात रद्द करके रुपया लिया जायेगा। यदि अवतक आंग्ल भारतीय भाई कांग्रेसमें शरीक नहीं हुए हैं तो इसका बड़ा कारण उनकी अनिच्छा ही है। यदि यह कहा जाये कि कांग्रेसको उनकी सहायता प्राप्त करनेके लिए खास तौरपर उद्योग करना चाहिए था तो मैं इतना ही कह सकता हूँ जो लोग अपनेको विदेशी और हिन्दुस्तानियोंसे श्रेष्ठ समझते हों, जैसा कि अबतक आंग्ल भारतीय भाई करते आये हैं, उनके बारेमें ऐसा उद्योग करना कठिन है।

५. आप जानते हो हैं कि हमारी आंग्ल भारतीय जातिमें इन दिनों दो किस्म की प्रवृत्तियाँ हैं——कुछ लोग तो यूरोपीयोंकी ओर झुक रहे हैं और कुछ हिन्दुस्तानियोंकी ओर। आप सारी आंग्ल भारतीय जातिको (अ) अपने लाभके लिए तथा (ब) भारतके लाभके लिए क्या सलाह देते हैं?

मुझे इस दुःखदायी प्रवृत्तिका पता है। मेरी रायमें तो आंग्ल भारतीय भाइयोंके लिए गौरवपूर्ण काम यही हो सकता है कि वे अपना भाग्य उन लोगोंके साथ जोड़ लें जिनके बीच वे पैदा हुए हैं और जिनके बीच उन्हें रहना और जीवन बिताना है। अंग्रेजोंका पुछल्ला बनकर रहनेका उनका निरर्थक प्रयत्न उनको स्थायी तथा उन्नतिशील जीवनमार्ग अपनानेसे रोकता है। यूरोपीय बननेकी आकांक्षा अस्वाभाविक है। अपने भारतीय माता या पिताकी तरफ तथा भारतीय वातावरणकी तरफ मुड़ना उनके लिए अत्यन्त स्वाभाविक और गौरवपूर्ण है। यह उनके लिए तथा उनकी मातृभूमि, भारतवर्ष, दोनोंके लिए हर मानीमें लाभदायक होगा।

अनावश्यक अपव्यय

राजशाहीकी महिला सभा एक अत्यन्त सुन्दर आयोजन था। यूनिवर्सिटी इन्स्टीट्यूटकी बहनोंकी सभाकी तरह वहाँ भी रुपयों और गहनोंकी वर्षा हो गई थी। सच तो यह है कि बहनोंने सभी जगह ऐसा ही किया है। पर राजशाहीमें तो उनकी वर्षा होती ही चली गई। एक बहुत बड़ी कताई-प्रतियोगिताका भी आयोजन किया गया था जिसमें कोई दो सौसे ज्यादा महिलाओंने भाग लिया। उनमें एक महिला बारीक सूत कातनेमें बहुत निपुण थी। उनका काता हुआ सूत अपर्णा देवीके, जो हालमें सर्वप्रथम आई हैं, सूतसे भी बढ़िया था। वे स्वयं बहुत महीन सूतसे बनी हुई एक साड़ी पहने थीं। उन्होंने बताया कि यह सूत उन्होंने स्वयं काता था। पर इस बहनका चरखा भी दूसरे सभी लोगोंकी तरह बहुत आवाज करता था। वे सबके सब खिलौने ही थे। जिनपर पर्याप्त सूत काता ही नहीं जा सकता था। ये चरखे बाबू तारकनाथके बनाये हुए थे। वे इनके प्रति बहुत उत्साही हैं। पर उनका