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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उत्साह अन्धा है। वे यन्त्रोंकी कुछ थोड़ी जानकारी जरूर रखते हैं पर चरखोंके बारेमें कुछ नहीं जानते। मुझे लगता है कि वे कताईके सिद्धान्तोंके बारेमें भी कुछ नहीं जानते। मैं उनसे यही प्रार्थना करूँगा कि वे अपने चरखे राजशाहीकी सुसंस्कृत और देशभक्त बहनोंपर न लादें। यदि वे लाभकी दृष्टिसे ये चरखे बनाते हैं तो वे इन चरखोंको वापस लेकर ठीक चरखे बनायें। यदि उन्हें बनानेका हेतु सेवा है तो इन निकम्मे चरखोंको तोड़ दें, चरखोंका वैज्ञानिक अध्ययन करें और जबतक सर्वोत्तम चरखेको अच्छी तरह देख न लें तबतक दूसरा चरखा न बनायें। मैंने बंगालमें सिर्फ तीन ऐसे नमूनेके चरखे देखे हैं, जिन्हें अच्छा माना जा सकता है। इन तीनोंमें से खादी प्रतिष्ठानका चरखा मुझे सबसे अच्छा लगा है। दूसरा यह है जिसे दुआ डण्डोके कार्यकर्त्ता काममें ला रहे हैं। उसकी विशेषता यह है कि तकुआ तिरछा लगाया जाता है। तीसरा बंगालका पुराने ढंगका चरखा है जिसकी पाटी छोटी, चक्र भारी और तकुआ लम्बा है। अच्छे चरखेकी पहचान है (१) वह शोर न करे और, (२) साधारण कातनेवाला भी उससे दस अंकका कमसे-कम चार सौ गज सूत प्रति घंटा का सके। मुझे मालूम हुआ है कि दूसरे दोनों नमूनोंके चरखोंसे प्रति घंटा दस अंकका ६०० गज सूत काता जा सकता है। खादी प्रतिष्ठानके चरखेपर तो मेरे सामने ८५० गज सूत प्रति घंटा काता गया। इस चरखेपर प्रतिष्ठानके सभी कार्यकर्त्ता ४०० गज प्रति घंटा कात लेते हैं। चरखे बनानेवालोंको यह मालूम होना चाहिए कि ऐसे शोर मचानेवाले चरखे, जिनसे औसत सूत भी नहीं काता जा सकता, बेचकर वे खादी-प्रचारके कार्यका अहित ही करेंगे। मैं कार्यकर्त्ताओंको चेतावनी देना चाहता हूँ कि वे पेशेवर या स्वेच्छया कताई करनेवालोंको ऐसे घटिया किस्मके चरखे न दें। उन्हें मालूम है कि मेरे द्वारा बताये गये स्तरके चरखे उन्हें आसानीसे मिल सकते हैं। यदि बंगालमें किसीके पास कोई अच्छा चरखा है तो वह उसे मेरे पास भेज दें। मैं वादा करता हूँ कि उसकी अविलम्ब जाँच की जायेगी और निर्णय तुरन्त बता दिया जायेगा। जनसाधारणके लिए कताई जिन्दगी और मौतका सवाल है। जो इसके प्रचार-कार्यमें लगे हैं वे इस बातका ध्यान रखें कि थोड़ी-सी जानकारीसे जबर्दस्त हानि बचाई जा सकती है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २३-७-१९२५