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२६०. भाषण : मारवाड़ी अग्रवाल सम्मेलन, कलकत्तामें

[२४ जुलाई, १९२५ से पूर्व]

सभापति महोदय, भाइयो और बहनो,

आपने मुझको यहाँ आनेका निमन्त्रण दिया और अब आप मुझसे कुछ सुनना चाहते हैं। इन दोनों बातोंके लिए मैं एहसान मानता हूँ। इस पत्रकमें दिये गये आजके प्रस्तावोंका मैंने निरीक्षण कर लिया है। इसमें विधवा विवाहका प्रश्न उठाया गया है। और मेरा हवाला दिया गया है। इसपर मैं यही उचित समझता हूँ कि आपसे कुछ न कहूँ। मैं इसके बारेमें 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' में कह चुका हूँ। जो भाई मेरे खयालातोंको समझना चाहते हैं तो मैं उनसे यह निवेदन करूँगा कि वे वहाँ जो कहा गया है उसे पढ़ लें। इससे आपका समय भी बच जायेगा और आपका समाधान हो जायेगा।

सिद्धान्तकी दृष्टिसे हिन्दू समाजके अनेक सुधारोंके विषयमें मैं दो बातें आपसे कह देना चाहता हूँ। आपमें से कितने ही भाइयोंके साथ मेरा हार्दिक परिचय है। विधवा विवाहके बारेमें जो-कुछ मेरा मत है उसे मैंने 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' में प्रकट कर दिया है; पर यहाँपर इतना अवश्य कह देना चाहता हूँ कि मैं एक सुधारक होते हुए भी जिस बातको स्वीकार कर लेता हूँ वह धर्मके विरुद्ध नहीं होती।

मैं जानता हूँ कि मेरी सुधारवृत्ति पश्चिमसे प्रभावित नहीं है। कुछ लोग मुझे पाश्चात्य सभ्यताका प्रचारक कहकर मेरी टीका करते हैं। अपने ऐसे टीकाकारोंको मैं नादान समझता हूँ। उन्होंने न तो मेरे विचारोंको समझा है और न मेरे साथ रहकर मेरे जीवनके रहस्यको ही। जिस बातको मैं स्वीकार कर लेता हूँ——सत्याग्रही होनेके कारण मैं उसपर बराबर दृढ़ रहता हूँ। यहाँ सत्याग्रहका अर्थ प्रचलित सत्याग्रह नहीं है। वास्तवमें सच्चे अर्थमें सत्यका ही आग्रह करना सत्याग्रह है। जिस पाश्चात्य सिद्धान्तका मैं प्रचार करना चाहता हूँ उसे मैं स्पष्ट कह देता हूँ। जैसे आयुर्वेदके विषयमें मैंने कहा था कि पाश्चात्य देशोंसे आरोग्य प्राप्त करनेके विषयमें जितना हमें सीखना है, सिखाना उससे बहुत कम है।

मैं अपनेको सनातनी हिन्दू समझता हूँ। जब विधर्मियों द्वारा इस धर्मपर चोट की जाती है तब हमें आन्तरिक क्लेश होता है। किन्तु मैंने हमेशा कहा है कि मैं वर्णाश्रम धर्मको मानता हूँ; परन्तु इसमें जो जातीय भेदभाव आ गये हैं उन्हें मैं मिटाना चाहता हूँ। मैं हिन्दू धर्मको अहिंसासे ओत-प्रोत धर्म समझता हूँ।

इस समय जातीय बहिष्कारके हथियारको आप अपने म्यानमें रखें। यह समय जातीय बहिष्कारका नहीं है। एक आदमीने अपनी अबोध विधवा बालिकाका विवाह कर दिया, इसपर आप उसका बहिष्कार कर देते हैं। परन्तु एक आदमी व्यभिचारी और मांसाहारी है; उसका आप बहिष्कार नहीं करते। इस प्रकार के जातीय बहिष्कृतों-