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भाषण : मारवाड़ी अग्रवाल सम्मेलन, कलकत्तामैं

काम लेना बहुत अधिक आवश्यक है। क्योंकि आपको यह समझ लेना चाहिए कि यदि विवेक और विचारसे काम लिये बिना धन खर्च किया जाये तो उसके सदुपयोगकी सम्भावना बहुत कम हो जाती है। इसलिए आप जैसी उदार कौमके लिए विचार और विवेककी बड़ी जरूरत है।

पारसी कौमपर तो मैं मुग्ध ही हूँ। मैं आज यहाँ कहना चाहता हूँ कि उदारतामें प्रथम पद पारसियोंका और दूसरा यहूदियोंका है। मुझे इससे बड़ा संकोच होता है कि तीसरा हिन्दुओंमें मारवाड़ियोंका है। पारसी जाति कितनी अधिक उदार है और कमसे-कम धनका व्यय करते समय वह किस विचार और विवेकसे काम लेती है यह मैंने स्वयं देखा है। इसलिए यहाँपर अधिक न कहकर केवल इतना ही अनुरोध करता हूँ कि आप (मारवाड़ी) भाई यह बता दें कि हम हिन्दुओंमें भी एक जाति ऐसी है जो धन कमाने और उसका व्यय करनेमें एक ही है।

गोरक्षाके सम्बन्धमें मेरे विचार सबपर विदित हैं। मैंने बार-बार कह दिया है कि यह कार्य बहुत अच्छा है। पर मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि इस कामकी पद्धतिमें सुधारकी आवश्यकता है। मैंने स्वयं इस काममें हाथ डाला है। पर मुझे सहायता नहीं मिली है। मेरा अनुभव भी इस दिशामें अच्छा है। मैंने कोई ३० वर्षों तक इसे सोचा-समझा है। कुछ तपश्चर्या भी कर ली है। मुझे सहायता मिलनेकी बात तो ऐसी है कि मैंने एक मारवाड़ी सज्जनसे गोरक्षा-कोषका खजानची बननेका अनुरोध किया और उन्होंने इनकार कर दिया; यद्यपि उनको कोषाध्यक्ष बनानेमें मेरा उद्देश्य उनसे रुपयेकी अत्यधिक सहायता लेना नहीं था, पर इतना सब होते हुए भी मैं जोर देकर यह बात कह देना चाहता हूँ कि अगर मारवाड़ी कौम गोरक्षा नहीं कर सकती अथवा वह गायोंको नहीं बचा सकती तो मैं नहीं जानता कि दूसरी कौन-सी जाति है जो ऐसा कर सकती है। दूसरे शब्दोंमें हिन्दुओंमें अगर मारवाड़ी गोरक्षा नहीं कर सकते तो कोई नहीं कर सकता। पर गोरक्षामें अनेक बातोंकी जरूरत है। इसमें जितने द्रव्यकी आवश्यकता है उतनी ही बुद्धि और समयकी भी है। इसलिए इस प्रश्नपर विचार करते समय इन तीनों बातोंपर और इनसे सम्बन्धित अन्यान्य बातोंपर भी पूरा ध्यान रखना चाहिए। तभी हमें अपने इस काममें सन्तोषजनक सफलता प्राप्त हो सकती है।

अन्तमें इतने धैर्य और शान्तिपूर्वक आपने मेरी बातें सुनीं इसके लिए मैं आपका एहसान मानता हूँ और ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि वह आप लोगोंका कल्याण ही कल्याण करे।

आज, २४-७-१९२५