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२६१. पत्र : मेडेलीन स्लेडको[१]

१४८, रसा रोड
कलकत्ता
२४ जुलाई, १९२५

प्रिय बहन,

मुझे आपका पत्र[२] पाकर खुशी हुई। उसका मुझपर गहरा असर हुआ। आपने जो ऊनके नमूने भेजें हैं, वे बढ़िया हैं।

आप जब आना चाहें खुशीसे आ सकती हैं। अगर मुझे मालूम हो जाये कि आप किस जहाजसे आ रही हैं, तो जहाजपर आपको लेने कोई आ जायेगा और साबरमती आनेवाली गाड़ीतक आपको छोड़ जायेगा। लेकिन इतना याद रखिए कि आश्रम-जीवन आरामका जीवन नहीं है। वह कठोर है। हरएक आश्रमवासी शरीरश्रम करता है। इस देशकी जलवायुका भी विचार कर लेना चाहिए। ये बातें मैं आपको डरानेके लिए नहीं, परन्तु सिर्फ चेतावनीके तौरपर लिख रहा हूँ।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

[पुनश्च :]

चूँकि मेरे दायें हाथको आरामकी जरूरत है, इसलिए पत्र बोलकर लिखा रहा हूँ।

अंग्रेजी पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ५१८२) से।

सौजन्य : मीराबहन

 
  1. मोरा बदन (जन्म १८९२–) सन् १९२५ के नवम्बरमें आश्रममें आई और उसके बाद बराबर गांधीजीके साथ उनकी प्रवृत्तियोंमें भाग लेती रहीं।
  2. देखिए परिशिष्ट ६।