पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/४६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२६२. पत्र : कोण्डा वेंकटप्पैयाको

१४८ रसा रोड
कलकत्ता
२४ जुलाई, १९२५

प्रिय वेंकटप्पैया,

आपका पत्र अपनी पूर्णता, स्पष्टता तथा उसे यथासम्भव संयत बनाये रखनेके आपके निश्चयके कारण मुझे पसन्द आया।

मेरी अपनी स्थिति तो साफ ही है। कांग्रेसने स्वराज्यवादी दलको अपने राजनीतिक कार्यक्रमको आगे बढ़ानेका कार्य सौंपा है। अतः प्रत्येक कांग्रेसी यह कह सकता है कि स्वराज्यवादी दल उसकी ओरसे राजनीतिक कार्यक्रमको चलाता है और जब भी उसे यह लगे कि वह स्वराज्यवादियोंकी गतिविधियोंका पूर्णतः समर्थन नहीं कर सकता, वह कांग्रेसको छोड़ सकता है अथवा कांग्रेसमें रहकर उसका विरोध कर सकता है। किन्तु मेरी स्थिति तो ऐसी है कि न मैं उसे छोड़ सकता हूँ और न ही उसमें रहकर उसका विरोध कर सकता हूँ। यदि मैं कौंसिलोंमें कांग्रेसका किसी प्रकारका राजनीतिक प्रतिनिधित्व चाहता ही हूँ तो मैं उसकी लड़नेकी सामर्थ्यके कारण केवल स्वराज्यदलको ही यह काम सौंप सकता हूँ। ऐसा मैं सिद्धान्ततः कौंसिल-प्रवेशके विरोधमें होते हुए भी कह सकता हूँ। एक भारतीयके नाते मुझे चोर और पुलिसमें से एकको चुनना है; यद्यपि अहिंसामें विश्वास रखनेके कारण दोनों ही मेरे लिए समान रूपसे त्याज्य हैं। एक सामाजिक प्राणी होनेकी अपनी जिम्मेदारीसे मैं कभी भी मुँह नहीं मोड़ सकता और इसलिए मुझे ऐसा चुनाव तो हमेशा करना ही पड़ेगा। इसी कठिनाईको देखते हुए हमारे ऋषि-मुनियोंने उन लोगोंके लिए, जो अपने बन्धु-बान्धवोंके कार्यके सम्बन्धमें किसी प्रकारका उत्तरदायित्व नहीं लेना चाहते, गुफाओंमें रहनेका विधान किया। वे आदमियोंकी बस्तियों-भरसे ही नहीं बचते बल्कि उनके हाथका पैदा किया हुआ अन्न भी ग्रहण नहीं करते; वे केवल कन्दमूल-फल खाकर बसर करते हैं जिनके उत्पादनमें आदमीका कोई निमित्त नहीं होता। मैं अपने आपको उस स्थिति- के योग्य नहीं समझता। मैं मानव समाजमें रहता हूँ और इसलिए जहाँ-कहीं भी यह अनिवार्य होता है, अपनी मतिके अनुसार, जिनका मैं अन्यथा समर्थन नहीं कर सकता, ऐसे बहुतसे कार्योंके लिए अपने-आपको जिम्मेदार मानता हूँ। इसी प्रकार मेरे सामने अभी ऐसी स्थिति नहीं आई है कि मुझे कहना पड़े कि मैं कांग्रेसमें नहीं रहना चाहता। स्वराज्यदलको सौंपे गये कार्यका क्षेत्र निश्चित रूपसे सीमित है। सामान्य राजनीतिक कार्यकी हदतक ही मैं उसे अपना मुख्तार मानता हूँ। उनके व्यक्तिगत चरित्र और व्यवहारकी जिम्मेदारी मैं अपनी नहीं मानता। मालूम नहीं, मैं अपनी बात समझाकर कह सका हूँ या नहीं। लॉर्ड बर्कनहेडके भाषण और निस्सन्देह देशबन्धुके निधनके कारण मैंने जो कदम उठाया है, उससे आप परिचित हैं। अब मुझे