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२६४. भाषण : यूरोपीय संघकी बैठकमें[१]

कलकत्ता
२४ जुलाई, १९२५

इसके बाद महात्मा गांधीने भाषण दिया।

उन्होंने खड़े होकर भाषण न देनेके लिए क्षमायाचना की और बताया कि ५ या ६ वर्ष पूर्व मुझे अतिसारका भयानक प्रकोप हो गया था। उसके कारण मेरा शरीर शक्तिहीन हो गया है। मैं आपके संघको मुझे आमन्त्रित करनेके लिए धन्यवाद देता हूँ।

सहयोगके लिए तो मैं व्याकुल हो रहा हूँ।[२]

गांधीजीने आगे कहा कि जब कभी मुझे यूरोपीयोंसे कहीं और किसी भी सिल-सिलेमें मिलनेका अवसर आता है तो मुझे सचमुच प्रसन्नता होती है। और चूँकि मेरी नीति अहिंसाकी है इसलिए मुझे स्वयं तो किसी भी प्रकारकी कोई क्षति पहुँचनेका भय नहीं है।

आप लोग जो भी प्रश्न करना चाहें, कर सकते हैं और जो-कुछ कहना चाहें कह सकते हैं। मैं उसे सद्भावपूर्वक ग्रहण करूँगा। विधाताने इंग्लैंड और भारतको एक साथ ला खड़ा किया है और वह भी एक अच्छे उद्देश्यके लिए; अर्थात् मानवताकी सेवाके लिए। मैं व्यक्तिगत रूपसे यूरोपीयोंके दृष्टिकोणको समझनेका अवसर हाथसे कभी जाने नहीं देता। इसी भावनाको लेकर मैं आज इस शामको आपके पास आया हूँ और आपसे यही भावना अपनानेकी प्रार्थना करता हूँ। मैं आशा करता हूँ कि इसमें बजाय भारतीयोंके अंग्रेज लोग पहले आगे बढ़ेंगे।

महात्माजीने कहा कि मैं स्पष्ट रूपसे स्वीकार करता हूँ कि जो विषय मुझे दिया गया है वह विशेष आकर्षक नहीं है। इसका मुख्य कारण यह है कि यह विषय अन्य अनेक विषयोंके मुकाबिले विशेष महत्त्वपूर्ण नहीं है। आज मुझे जिस विषयपर बोलना है वह है "कलकत्ताके मेयरके चुनावमें मैंने हस्तक्षेप क्यों किया?"[३]मैंने सुना है कि मेरी कार्रवाईसे यूरोपीय और भारतीय दोनों ही नाराज हैं। किन्तु हस्तक्षेप मैंने अपनी मर्जीसे नहीं किया था।

  1. यह बैठक डब्ल्यू॰ डब्ल्यू॰ पेजको अध्यक्षतामें ग्रैंड होटलमें हुई थी; गांधीजीके भाषणके पहले श्री पेजने उनके परिचयमें कुछ शब्द कहे थे।
  2. २५ जुलाई, १९२५ के इंग्लिशमैनमें प्रकाशित रिपोर्टके अनुसार गांधीजीने कहा कि कुछ समय पूर्व एक अंग्रेज मित्रने मुझे लिखा था कि यद्यपि आप अपनेको असहयोगी कहते हैं फिर भी आप सहयोगके लिए व्याकुल रहते हैं। मैंने उनको लिखा कि आप ठीक कहते हैं।
  3. देखिए "कलकत्ताके मेयर", १६-७-१९२५।