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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करना चाहिए और ऐसा कोई काम न करना चाहिए जिससे उसके अंगीकृत कार्यको हानि पहुँचे। हम जिनके यहाँ जाकर ठहरते हैं उसकी घर-गिरस्तीसे हमारा कोई सम्बन्ध नहीं होता। जहाँ सार्वजनिक सम्बन्ध हो वहाँ व्यक्तिगत सम्बन्धोंकी गुँजाइश ही कहाँ है? स्वयंसेवक जिस घरमें भी ठहरते हैं, उसमें खानगी नातेसे नहीं, बल्कि उसे अतिथि-गृह समझकर अपने कार्यके निमित्त ही ठहरते हैं। फिर अपनी शीलरक्षाका अभिलाषी पुरुष तो स्त्रीके साथ एकान्त सेवनसे सदा ही बचता है। यह केवल स्वयंसेवकोंका ही धर्म नहीं——यह तो मित्रका, अतिथिका, आश्रितका और सबका धर्म है। दम्पतीके कमरेके आसपास किसीको नहीं सोना चाहिए—— यह सज्जनताका लक्षण है। दुर्भाग्यवश हमारे घरोंमें ऐसी व्यवस्था नहीं होती और हमें ऐसे विवेकका पालन करनेकी आदत भी नहीं होती। परन्तु दम्पतीके कमरेसे दूसरे लोगोंका सम्पर्क न रहे, इसकी आवश्यकता और औचित्यके विषयमें दो मत हो ही नहीं सकते। जहाँ ऐसी सुविधा न हो वहाँ स्वयंसेवकको चाहिए कि वह बहुत सावधानीसे रहे और ऐसा सम्भव न हो तो ठहरनेके लिए दूसरी जगह ढूँढ़े।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २६-७-१९२५
 

२६८. सन्देश : 'फॉरवर्ड' को

२७ जुलाई, १९२६

लोकमान्य स्वराज्यके लिए ही जिये और मरे। उन्होंने हमें यह विश्वास करना सिखाया कि स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। मैं जानता हूँ कि जबतक हम चरखेको उसके प्राचीन गौरवके साथ अपने गाँवोंमें पुनः स्थापित नहीं करते, तबतक इस जन्मसिद्ध अधिकारको पुनः प्राप्त करना असम्भव है। और ऐसा तबतक सम्भव नहीं है जबतक हम शिक्षितवर्ग कताईकी सुन्दर और जीवनदायिनी कलाको नहीं सीख लेते और खद्दर नहीं पहनने लगते, फिर चाहे वह मोटा हो या महीन, महँगा हो या सस्ता। स्वराज्यके लिए कोई भी कीमत चुकाना महँगा नहीं है। तब यदि हम लोकमान्यकी स्मृतिका सम्मान करना चाहते हैं तो हमें प्रतिदिन कमसे-कम आधा घंटा कातने तथा खादी पहननेका निष्ठाके साथ संकल्प करना चाहिए और दूसरोंको भी इसी प्रकार करनेके लिए प्रेरित करनेकी प्रतिज्ञा करनी चाहिए।

मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
फॉरवर्ड, १-८-१९२५