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२६९. पत्र : बनारसीदास चतुर्वेदीको

कलकत्ता
श्रावण सुदी ६ [जुलाई २७, १९२५][१]

भाई बनारसीदासजी,

मेरी दाहिनी अंगुलीमें दर्द होनेके कारण मैं बायें हाथसे लीखता हूं. तुमारा पत्र मीला है. पैसेके लीये मैंने चि॰ छगनलालको लीखा है कि उसको कुछ उजर न हो तो बाकी सब पैसे तुमको भेज दे. मैं समझता हूं कि हिसाब भी पीटीटको सीधा भेजते रहोगे. मैंने यह भी मान लीया है कि इस समय जो हम कर रहे है वह सब ठीक मी॰ पेटीटके साथके समझौताके अनुकूल है.

तुमारे पत्रके अंतीम हिस्सेमें मुझे रोष और निराशा प्रतीत होते है. ऐसा क्यों!

मोहनदासके वं॰ मा॰

पंडित बनारसीदास चतुर्वेदी
फिरोजाबाद
जिला आगरा

मूल पत्र (जी॰ एन॰ २५२०) की फोटो-नकलसे।

 

२७०. पत्र : डी॰ हनुमन्तरावको

१४८, रसारोड
भवानीपुर
[२८] जुलाई, १९२५

प्रिय हनुमन्तराव,

मेरे दाहिने हाथको आरामकी जरूरत है, इसलिए मैं यह पत्र बोलकर लिखा रहा हूँ। आपका पत्र पाकर प्रसन्नता हुई। जबतक मैं आपको सबल, स्वस्थ और स्फूर्तिमय नहीं देखता तबतक मुझे सन्तोष नहीं होगा। मैं चाहता हूँ कि आप प्राकृतिक चिकित्साके एक चलते-फिरते विज्ञापन बन जायें।

मेरा विचार है और वह प्रतिदिन दृढ़तर होता जा रहा है कि जल चिकित्सा एक महत्त्वहीन पद्धति है। वास्तविक चिकित्साके रहस्यको समझना तो अभी बाकी ही है, और वह है हवा। हमें अभी एक कदम आगे बढ़ना है, किन्तु वह एक कदम ही बहुत

  1. डाककी मुहर २८ जुलाई, १९२५ की है।