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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दूर है। हम ताजी हवा और जलवायुके परिवर्तनकी उपयोगिताको नहीं समझते। मैं चाहता हूँ कि आप विभिन्न स्थानोंकी जलवायुको तबतक बदल-बदल कर देखते रहें जबतक आपको ऐसा जलवायु नहीं मिल जाता जो आपको अनुकूल पड़े और जिसमें आप पूर्ण रूपसे स्वास्थ्य-लाभ कर सकें। श्री शर्माको जरूर भेजिए। मैं सम्भवतः अगस्तके अन्ततक कलकत्तामें हूँ; मध्यतक तो निश्चित रूपसे हूँ। हो सकता है कि बीचमें दो या तीन दिनके लिए वहाँ न रहूँ। मैं जितना फुरसतका समय दे पाऊँगा, देनेका प्रयास करूँगा। कृष्णया कैसे हैं?

हृदयसे आपका,

श्री डी॰ हनुमन्तराव
डिगुमार्टि हाउस
बरहामपुर
गंजम जिला

टाइप की हुई अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १०५९३) की फोटो-नकलसे।

 

२७१. पत्र : डब्ल्यू॰ एच॰ पिटको

१४८, रसा रोड
भवानीपुर
[कलकत्ता]
२८ जुलाई, १९२५

प्रिय श्री पिट,

आपका गोपनीय पत्र[१] मिला। मैं आपके पत्रमें निहित तर्कके बल और उसके पीछेकी सद्भावनाकी कद्र करता हूँ। हमारा मूलभूत मतभेद तो फिर भी बना ही हुआ है; क्योंकि हम दोनोंमें भेद स्वभावका है। इसके अलावा इस प्रश्नपर गौर करनेके हमारे दृष्टिकोणमें भी अन्तर है। फिर भी मेरा काम यथासम्भव, मित्र, शत्रु, तटस्थ उन सभी लोगोंसे मिलनेका है जो इस प्रश्नको सुलझानेमें दिलचस्पी रखते हैं। मैं इस समय श्री च॰ राजगोपालाचारीसे पत्रव्यवहार कर रहा हूँ। आप जानते ही हैं कि वे इस मामलेमें मेरे सहयोगी हैं, और उनके निर्णयपर मुझे सबसे अधिक भरोसा है। मैं उन्हें लिख रहा हूँ कि यदि आवश्यकता पड़े तो वे वाइकोम या त्रिवेन्द्रम् भी जायें। इस बीचमें सार्वजनिक रूपसे एक शब्द भी न कहूँगा। आपको सूचना दिये बिना तथा भलीभाँति सोच-विचार किये बिना आगे कोई कदम नहीं उठाया जायेगा। आपने मुझे यह विश्वास दिलाया है कि अधिकारी इस बुराईको दूर करनेके लिए पूरा जोर लगा रहे हैं और यह मेरे लिए एक बड़ा प्रलोभन है; इसीलिए मैं

  1. देखिए परिशिष्ट ३।