पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/४७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४४७
पत्र : च॰ राजगोपालाचारीको

आपका सुझाव स्वीकार करनेको तैयार हूँ किन्तु मैं अभी किसीसे परामर्श किये बिना ही इतनी दूर बैठकर निश्चिन्त भावसे अपना निर्णय देना ठीक नहीं समझता।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

[पुनश्च :] मेरा दाहिना [हाथ] काम नहीं कर रहा है।

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १११००) की फोटो-नकलसे।

 

२७२. पत्र : च॰ राजगोपालाचारीको

१४८ सरसा रोड
भवानीपुर
[कलकत्ता]
२८ जुलाई, १९२५

प्रिय च॰ रा॰,

हाथको कुछ दिनोंतक आराम देनेकी जरूरत है। इसलिए मैं अपने पत्र बोलकर लिखा रहा हूँ। आशा है आपको पिटका वह पत्र मिल गया होगा जिसे मैंने आपके पास भेजा था। मैं यह दूसरा पत्र तथा अपने उत्तरकी नकल[१] आपके पास भेज रहा हूँ। मैं केलप्पनका पत्र भी भेज रहा हूँ। कृपया सलाह दें। यदि चाहें तो आप कमिश्नरसे पत्रव्यवहार कर सकते हैं और स्वयं ही केलप्पनको लिख सकते हैं। जैसा कि आपको कमिश्नरको लिखे गये मेरे पत्रसे मालूम होगा, मैं उनके सुझावको स्वीकार करनेके लिए तैयार हूँ, किन्तु अभी मेरी समझमें नहीं आ रहा है कि क्या करूँ। स्वयंसेवकोंके दृष्टिकोणको समझना आवश्यक है। आपको केलप्पनके इस प्रस्तावपर भी विचार करना होगा कि उन्हें कार्य-विमुक्त किया जाये। मेरा खयाल है कि ऐसा करना आवश्यक होगा।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ १११०३) की फोटो-नकलसे।

 
  1. देखिए "पत्र : डब्ल्यू॰ एच॰ पिटको", २८-७-१९२५।