पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/४८०

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२७३ : पत्र : के॰ केलप्पन नायरको

१४८, रसा रोड
भवानीपुर, (कलकत्ता)
२८ जुलाई, १९२५

प्रिय केलप्पन,

आपका पत्र[१] मिला। मुझे श्री पिटका भेजा हुआ एक लम्बा पत्र[२] भी मिल गया है। मैं उस पत्रकी एक नकल भेज रहा हूँ और साथ ही श्री पिट तथा श्री राज- गोपालाचारीको भेजे गये अपने पत्रोंकी प्रतिलिपियाँ भी। कृपया श्री राजगोपालाचारीसे पत्रव्यवहार करके उन्हें अपने विचारोंसे अवगत करा दीजिए। यदि आश्रमके काममें इससे कोई व्यवधान न पड़े तो आपको कार्यमुक्त किया जा सकता है। तब आप अवश्य जा सकते हैं और केरल समितिका कार्यभार सँभाल सकते हैं।

आशा है कि अब आप बिलकुल स्वस्थ हो गये होंगे। कार्यकर्ताओंको बीमार नहीं पड़ना चाहिए। {{Right|हृदयसे आपका, अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १११०२) की फोटो-नकलसे।

 

२७४. पत्र : फ्रेड ई॰ कैम्बेलको[३]

१४८, रसा रोड
कलकत्ता
२८ जुलाई, १९२५

प्रिय नवयुवक मित्र,

मुझे आपके पत्रक[४] स्पष्टवादिता और निश्छलता पसन्द आयी। उसके लिए धन्यवाद!

  1. देखिए परिशिष्ट ४।
  2. देखिए परिशिष्ट ३।
  3. कैम्बेलने अपनेको अमरीकाके केन्सास नगरका एक १५ वर्षीय किशोर बताया था।
  4. कैम्बेलने अपने ४ मईके पत्रमें लिखा था : "कुछ दिन पूर्व मैंने अपने यहाँके ईसाई गिरजाघरमें एक उपदेश सुना था जिसमें पादरी महोदयने हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच मौजूद तनातनीको शान्त करनेके लिए किये जानेवाले आपके उपवासका एक सजीव विवरण दिया था...उन सज्जनने बताया था कि यद्यपि आप ईसाई नहीं है फिर भी आज आप ईसाके सर्वोत्कृष्ट उदाहरण हैं। यह सुननेके बाद मैंने आपके बारेमें अधिक अध्ययन करनेका निश्चय किया। इस प्रयासमें मैंने अंग्रेजोंके साथ चलनेवाले आपके संघर्षके बारेमें पढ़ा। आपका उनके प्रति घृणा करनेका मुख्य कारण क्या है? क्या यह सौदागरीका मामला है?..."