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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सहायक है।' मैंने अपने जीवनका यह समस्त अनुभव आपको बता दिया है, ताकि आप उसपर विचार करें।

आप मिशनरी लोग यह सोचकर भारत आते हैं कि आप एक ऐसे देशमें जा रहे हैं जिसमें नास्तिक, मूर्तिपूजक और ईश्वरसे अपरिचित लोग रहते हैं। एक महान् ईसाई महात्मा बिशप हेवरने दो पंक्तियाँ ऐसी लिखी हैं जो मुझे बराबर खटकती रहती हैं "जहाँकी हर चीज मनको सुख पहुँचाती है, और मात्र मनुष्य ही नीच है।" अच्छा होता, उन्होंने ये पंक्तियाँ न लिखी होतीं। मैंने समस्त भारतकी यात्रा की है और उसमें मैंने जो-कुछ देखा है, वह इसके विपरीत है। समस्त पूर्वग्रहोंको मनसे दूर रखकर, सत्यकी सतत खोज करनेके लिए मैंने इस देशके एक सिरेसे दूसरे सिरे तककी यात्रा की है, और मैं नहीं कह सकता कि गंगा, ब्रह्मपुत्र और यमुनाके पवित्र जलसे अभिसिंचित इस सुन्दर भूमिमें रहनेवाले मनुष्य नीच हैं। वे नीच नहीं हैं, वे सत्य की खोज उतनी ही आकुलतासे कर रहे हैं जितनी आकुलतासे मैं और आप कर रहे हैं, बल्कि शायद मुझसे और आपसे ज्यादा आकुलतासे ही। यह मुझे फ्रेंच भाषाकी एक पुस्तककी याद दिलाता है, जिसका अनुवाद एक फ्रांसीसी मित्रने मेरे पढ़नेके लिए किया था। इस पुस्तकमें ज्ञानकी खोजमें किये गये काल्पनिक अभियानका वर्णन है। इन यात्रियोंका एक दल भारतमें उतरता है और उसको एक परियाकी छोटी-सी कुटियामें सत्य और प्रभुका मूर्तिमन्त रूप देखनेको मिलता है। मैं आपसे कहता हूँ कि अस्पृश्योंकी बहुत-सी ऐसी झोंपड़ियाँ हैं, जहाँ आपको निश्चय ही ईश्वरके दर्शन होंगे। वे तर्क-वितर्क नहीं करते, बल्कि अपनी इस आस्थापर दृढ़ हैं कि ईश्वर है। वे सहायताके लिए उसपर निर्भर रहते हैं और उनको वह सहायता मिलती भी है। इन उदात्त-चरित्र अस्पृश्योंके सम्बन्धमें भारत-भरमें अनेक कहानियाँ सुननेको मिलती हैं। उनमें कुछ लोग नीच हो सकते हैं, किन्तु उन्हींमें अत्यन्त उदात्त-चरित्र, आदर्श मनुष्य भी मिलते हैं। किन्तु क्या मेरा अनुभव केवल इन अस्पृश्योंतक ही सीमित है? नहीं। आज मैं आपको यह बात बता देना चाहता हूँ कि यहाँ ऐसे अब्राह्मण और ब्राह्मण भी हैं जो इतने अच्छे मनुष्य हैं, जितने अच्छे मनुष्य आपको पृथ्वीपर कहीं भी मिल सकते हैं। आज भारतमें ऐसे ब्राह्मण मौजूद हैं, जो आत्मत्याग, पवित्रता और विनम्रताकी प्रतिमूर्ति हैं। यहाँ ऐसे ब्राह्मण भी हैं, जो तन-मनसे अस्पृश्योंकी सेवामें लगे हैं। वे अस्पृश्योंसे किसी पुरस्कारकी अपेक्षा नहीं रखते, अलबत्ता सनातनी हिन्दुओंके क्षोभ और घृणाके पात्र जरूर बनते हैं। किन्तु वे इनकी चिन्ता नहीं करते, क्योंकि वे परियाओंकी सेवा करके परमात्माकी सेवा कर रहे हैं। मैं अपने व्यक्तिगत अनुभवोंके आधारपर इस बातके उदाहरण दे सकता हूँ। मैं पूरी विनम्रताके साथ इन तथ्योंको आपके सम्मुख केवल इस कारण प्रस्तुत करता हूँ कि आप इस देशको अधिक अच्छी तरह जान सकें, उस देशको, जिसकी सेवा करनेके लिए आप आये हैं। आप यहाँ इसलिए आये हैं कि आप भारतके लोगोंके कष्टोंको जान सकें और दूर कर सकें। लेकिन मैं आशा करता हूँ कि आप यहाँ कुछ सोचनेकी वृत्ति लेकर भी आये हैं; और यदि भारतके पास आपको सिखानेके लिए कुछ हो तो आप उस ओरसे अपने