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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चाहेंगे, यदि आप यह समझनेको तैयार नहीं होंगे कि भारत क्या सोच रहा है तो आप अपनेको सच्ची सेवाके सौभाग्यसे वंचित कर देंगे। मैंने अपने मिशनरी भाइयोंसे कहा है कि 'आप सत्पुरुष तो हैं, किन्तु आप जिन लोगोंकी सेवा करना चाहते हैं, उन्हींसे आपने अपनेको अलग कर लिया है।' यहाँ मैं आपको उस बातचीतकी याद दिलानेका लोभ संवरण नहीं कर सकता जिसका वर्णन मैंने दार्जिलिंगमें मिशनरियों द्वारा संचालित भाषा-विद्यालय (लैंग्वेज स्कूल) में किया था।[१] पादरियोंका एक शिष्टमण्डल अपनी चीन यात्राकी योजनाके सम्बन्धमें लॉर्ड सेलिस्बरीसे मिला था। शिष्टमण्डल अपने इस काममें सरकारका संरक्षण चाहता था। जवाबमें लॉर्ड सेलिस्बरीने जो-कुछ कहा वह मुझे शब्दशः तो याद नहीं है, फिर भी उसका आशय बता देता हूँ। उन्होंने कहा : 'सज्जनो, यदि आप चीन जाना चाहते हैं और वहाँ ईसाई धर्मके सन्देशका प्रचार करना चाहते हैं तो आप राजसत्ताकी सहायता मत माँगिए। आप अपने प्राण हथेलीपर रखकर जाइए और यदि चीनके लोग आपको मार देना चाहें तो आप यह समझिए कि आप ईश्वरकी सेवा करते हुए मरे हैं। लॉर्ड सेलिस्बरीने ठीक ही कहा था। मिशनरी लोग राजसत्ताकी छायामें अथवा यदि आप चाहें तो कहूँ कि राज्यके संरक्षणमें भारत आते हैं और यह तथ्य उनके मार्गमें एक ऐसी बाधा उपस्थित कर देता है, जो अगम्य है।

यदि आप मुझे इस विषयमें आँकड़े दें कि आपने कितने अनाथोंका उद्धार किया है और उनको ईसाई धर्ममें दीक्षित किया है तो मैं उनको मान लूँगा। किन्तु उससे मैं यह नहीं मान पाऊँगा कि यही आपका पुनीत उद्देश्य है। मेरी रायमें आपका उद्देश्य इससे बहुत ही ऊँचा है। आप भारतमें सच्चे मनुष्यकी खोज करना चाहते हैं और यदि आप उनको पाना चाहते हैं तो आपको गरीबोंके झोंपड़ोंमें जाना होगा और सो भी उन्हें कुछ देनेके लिए नहीं बल्कि बने तो उनसे कुछ लेनेके लिए ही। मैं मानता हूँ कि मैं भारतके मिशनरियों और यूरोपीयोंका सच्चा मित्र हूँ, इसीलिए मैं आपको अपने हृदयतलकी सच्ची भावना बता रहा हूँ। मुझे आपमें सीखनेकी नम्रता और भारतके जनसाधारणसे तादात्म्य स्थापित करनेकी इच्छा दिखाई नहीं देती। मेरे मनमें जो-कुछ था, मैंने बिना किसी दुरावके आपसे साफ-साफ कह दिया। अब यही मनाता हूँ कि आपके हृदयपर इसकी अनुकूल प्रतिक्रिया हो।

भाषणके अन्तमें लोगोंसे प्रश्न पूछनेके लिए कहा गया। उनमें से सबसे ज्यादा महत्त्वके प्रश्न और उनके उत्तर नीचे दिये जा रहे हैं :

प्रश्न——आपके विचारसे मिशनरी लोग जनसाधारणसे तादात्म्य कैसे स्थापित करें?

यह प्रश्न कुछ चकरानेवाला है। लेकिन मैं कहूँगा, आप चार्ली एन्ड्र्यूजका अनुकरण करें।

एक श्रोताने पूछा : जनसाधारणके बीच और जनसाधारणके लिए मिशनरियोंको आप कौन-सा काम करनेका सुझाव देंगे?

  1. देखिए "भाषण: ईसाई धर्म प्रचारिकाओंके समक्ष", ६-६-१९२५।