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भाषण : ईसाई धर्म प्रचारकोंके समक्ष

चूँकि, मुझे चुनौती दी गई है, इसलिए मुझे बेझिझक कहना होगा, "आप चरखेका काम करें।" आप हँसते हैं; यह स्वभाविक है, किन्तु यदि आप जनसाधारणको मेरी तरह जान लें तो आप इस सीधे-सादे औजारको, जिसे लोग एक तकलीफदेह चीज मानते हैं, (यहाँ श्री गांधीने अपनी तकली दिखाई, जिसे वे अपने पास रखते हैं) देखकर गम्भीरतासे सोचनेको विवश हो जायेंगे। आप भूखी और क्षीण जनताको ईश्वरका साक्षात्कार नहीं करा सकते। उसका ईश्वर तो भोजन ही है। जब भूखे स्त्री-पुरुष जनरल बूथ द्वारा खोले असंख्य डीपुओंमें पहुँचते थे तो वे उन्हें एक-एक तश्तरी सूप पकड़ा देते थे। इस समय उनका क्या कर्त्तव्य था, इसका उन्हें ठीक-ठीक भान होता था। तश्तरी-भर सूप देनेके बाद वे उन्हें अपने दियासलाईके कारखानेके लिए तीलियाँ बनानेका काम दे देते थे और उसके बाद ही फिर कुछ खानेकी देते थे। और जब यह सब हो जाता था तभी वे उनसे ईश्वरकी बात, धर्म चर्चा करते थे। भूखकी ज्वालामें भारतके करोड़ों लोगोंके जलते रहनेका कारण यह नहीं है कि भारतमें काफी अन्न पैदा नहीं होता। इसका कारण तो यह है कि उनके पास करनेको कोई काम नहीं है। और जो चीज करोड़ों लोगोंको रोजगार दे सकती है, वह चरखा ही है। मैं कलकत्तेके औद्योगिक मिशन हाउसको जानता हूँ। अपने ढंगसे यह एक अच्छी चीज है, लेकिन इससे तो इस समस्याका कुछ भी हल नहीं होता। समस्या यह है कि १९०० मील लम्बे और १५०० मील चौड़े इस विशाल भू-भागमें फैली लाखों-करोड़ों झोंपड़ियोंको रोजगार कैसे मुहैया किया जाये। जबतक आप खुद इस कलाको नहीं सीखते और जिनका न अपने-आपमें कोई विश्वास रह गया है और न किसी चीज या व्यक्तिमें, उन लोगोंके सामने एक उदाहरण पेश करनेके लिए जबतक आप खुद कताई नहीं करते, तबतक ये लोग चरखेको नहीं अपनायेंगे। और जबतक आप और मैं खद्दर नहीं पहनते तबतक चरखा बेकार ही है । इसीलिए मैंने लॉर्ड रीडिंग या लॉर्ड विलिंग्डनसे भी बेहिचक कहा है कि जबतक वे स्वयं और उनके अरदली नीचेसे ऊपरतक खद्दरकी पोशाकमें न होंगे तबतक मुझे सन्तोष नहीं होगा।

एक तीसरे प्रश्नकर्त्ताने पूछा, 'क्या आप निश्चित रूपसे यह अनुभव करते हैं कि आपके भीतर साक्षात् ईसा मसीह विद्यमान है?

यदि प्रश्नकर्त्ताका संकेत इतिहासमें उल्लिखित उस ईसा मसीहकी ओर है, जो क्राइस्ट भी कहलाते थे तो मुझे कहना चाहिए कि मैं ऐसा अनुभव नहीं करता। किन्तु यह एक विशेषण है, जो ईश्वरके नामका द्योतक है, तो मुझे कहना चाहिए कि मैं अपने भीतर ईश्वरकी——चाहे आप उसे क्राइस्ट कहें या कृष्ण अथवा राम—— उपस्थिति अवश्य अनुभव करता हूँ। हमारे यहाँ ईश्वरके द्योतक सहस्र नाम हैं और यदि मैं अपने भीतर ईश्वरका अस्तित्व अनुभव न करता होता तो मैं प्रतिदिन जो इतना दुःख और नैराश्य देखता हूँ, उससे मैं पागल हो जाता और फिर मुझे हुगलीकी धारामें ही शरण लेनी पड़ती।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ६-८-१९२५