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पत्र : शौकत अलीको

सभी महिलाओंने अपने हिस्सेका चन्दा अभी नहीं दिया है। मुझे बताया गया है कि वे अपने चन्देको अपने पतियोंके चन्देमें शामिल समझती हैं। मैं इस विचारसे सादर अपनी असहमति प्रकट करता हूँ। जैसा कि मैंने तिलक स्वराज्य कोषके लिए चन्दा एकत्र करते समय किया था। मैं चाहता हूँ कि प्रत्येक महिला अपने गहने और जेबखर्च चन्देमें दे। उनसे मेरा निवेदन है कि जो-कुछ उनका अपना है उसको चन्देमें दे दें और फिर अपने जीवन साथियोंसे उन चीजोंकी माँग न करें। ऐसा करनेपर उन्हें हानिका अनुभव नहीं होगा, केवल दान देनेकी खुशी रहेगी। सैकड़ों बहनें पहले ही इस भावनासे चन्दा दे चुकी हैं। यदि शेष बहिनोंके लिए भी देशबन्धुकी यादगार एक बहुमूल्य निधि है और यदि महिलाओंके लिए महिला चिकित्सालय तथा नर्सोंके प्रशिक्षणके लिए भी एक इतनी ही अच्छी संस्था खुलवाना श्रेयस्कर कार्य माना जाये तो मेरा सादर निवेदन है कि महिलाएँ उक्त भावनाका अनुकरण करें।

मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
फॉरवर्ड, २९-७-१९२५
 

२७७. पत्र : शौकत अलीको

१४८, रसा रोड
कलकत्ता
२९ जुलाई, १९२५

मेरे प्यारे दोस्त व बिरादर,

एक पत्रिकाके सम्पादकने मेरे पास पैगम्बर साहबपर लिखा अपना एक लेख भेजा है। इस लेखके कारण अहमदाबादमें अत्यंत उत्तेजनापूर्ण वातावरणमें एक सभा आयोजित की गई। सम्पादक महोदयने मेरे पास 'खिलाफत' के २९ मईके अंककी एक प्रति भी भेजी है।

यह लेख अशिष्ट अथवा अपमानजनक नहीं है। मेरे विचारमें इस लेखमें ऐसी कोई बात नहीं है जिसके कारण इतना तूफान उठ खड़ा होता। ऐसा नहीं लगता कि लेखकने पैगम्बरका कोई अच्छा जीवनचरित्र पढ़ा है। साथ ही यह भी कहना होगा कि यह लेख अज्ञानतासूचक जरूर है। उन्होंने 'कुरान पाक' तो हरगिज नहीं पढ़ा है। उन्होंने पैगम्बर साहबके जीवनका वैसा ही मूल्यांकन किया है जैसा कि हम यूरोपमें प्रकाशित होनेवाली साधारण आलोचनाओंमें पाते हैं। लेखकने मेरी राय माँगी है। मैंने उनसे उतना ही कहा है, जितना-कुछ आपसे। यदि 'खिलाफत' का उक्त अंक मेरे पास न भेजा गया होता तो मैं आपको इस बारेमें तकलीफ न देता।

मेरे विचारमें 'खिलाफत' के लेखकने लोगोंके रोषको उकसाया है, जिसकी आवश्यकता न थी। मैंने जिज्ञासाके कारण उस अंकके अन्य भाग भी पढ़े हैं और