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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि मुझे प्रस्तुत 'खिलाफत' अंककी भाषा, या उसकी सामान्य ध्वनि जरा भी अच्छी नहीं लगी। उसके अनुच्छेदोंमें 'मूर्ख, गधा, सरासर झूठ——आदि शब्दोंका खुलकर प्रयोग किया गया है। मेरे विचारमें आपको इस पत्रिकाकी भाषापर नियन्त्रण रखना चाहिए। उसमें मैंने एक भी अनुच्छेद ऐसा नहीं पाया जो सुविचारित ढंगसे लिखा गया या शिष्टतापूर्ण हो। मुझे विश्वास है कि लेखक यह भी नहीं जानता कि उसने जिस भाषाका उपयोग किया है वह अशोभनीय है।

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य : नारायण देसाई

 

२७८. भाषण : आंग्ल-भारतीयोंको सभामें[१]

२९ जुलाई, १९२५

अध्यक्ष महोदय तथा मित्रो,

मैं समझता हूँ कि बातचीतके शुरूमें ही आपको यह बतला देना ज्यादा ठीक रहेगा कि चुनिन्दा लोगोंके इस छोटेसे सुन्दर समारोहमें मैं कोई पहलेसे तैयार, बँधे-बँधाये किस्मका भाषण नहीं देना चाहता। मैं इसे बातचीतका रूप देना चाहता हूँ।[२]

अध्यक्षने जो उद्गार[३] अपने भाषणके अन्तमें व्यक्त किया है, मैं शुरूमें ही उसके विषयमें स्थिति स्पष्ट कर देना चाहता हूँ। उन्होंने मेरे सामने जो दृष्टिकोण रखा है मैं उसकी कद्र करता हूँ। वफादारीके सम्बन्धमें मैं भी ऐसे ही उद्गार व्यक्त करता था। लेकिन आप जानते ही हैं कि मैं पिछले ६ सालसे वफादारीकी नहीं, गैरवफादारीकी बात कहता आ रहा हूँ। बात यह नहीं है कि मैं हर चीजके प्रति गैरवफादार हूँ, किन्तु मैं अवश्य ही समस्त असत्य, समस्त अन्याय और समस्त बुराइयोंके प्रति गैरवफादार हूँ। मैं अपने सम्बन्धमें किसीको धोखेमें रखना नहीं चाहता ओर इसलिए यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ। मैं किसी संस्थाके प्रति तभीतक वफादार रहूँगा जबतक उससे मेरे विकासमें, राष्ट्रके विकासमें सहायता मिलती है। यह लगते ही कि संस्था राष्ट्रके विकासमें सहायता देनेके बजाय उसमें बाधा डाल रही है, तुरन्त उसके प्रति गैरवफादार हो जाना मैं अपना परम कर्त्तव्य मानता हूँ। मैं यह कदापि नहीं कह सकता कि मैं वर्तमान सरकारके प्रति, अर्थात् वर्तमान शासनप्रणालीके प्रति वफादार हूँ। मैं जोर देकर कहता हूँ कि मैं जीवनका एक-एक क्षण इस शासनप्रणालीको, जो राष्ट्रके पौरुषको खा रही है, जो उसके सत्य और साधनोंको चूस रही है, जो इस

  1. यह सभा शामको वेलेजली स्क्वेयरमें हुई थी।
  2. यह अनुच्छेद ३०-७-१९२५ के फॉरवर्डमें छपी रिपोर्टसे लिया गया है।
  3. डा॰ मोरेनोने कहा था कि वफादारी आंग्ल-भारतीयोंका धर्म है।