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१०. गोरक्षा

हम इस बीच एक कदम आगे बढ़े हैं। बम्बईकी सभाने[१] माधव बागमें उस संविधानको बहुमतसे स्वीकार किया है जो कि 'नवजीवन' में प्रकाशित हो चुका है। उसमें चार लोगोंने इसके खिलाफ हाथ उठाये थे। एक सज्जनने उसके एक नियमका विरोध करना चाहा था। मैं उन्हें इजाजत न दे सका। मैं सिर्फ इतनी ही सलाह दे सका कि यदि उनका मतभेद सिद्धान्तका हो तो उन्हें सारे संविधानका विरोध करना चाहिए; किन्तु यदि उनका मतभेद सिद्धान्तका न हो तो उन्हें संविधान स्वीकार करना चाहिए। मेरा नम्र मत है कि इस तरहकी सभाओंमें दूसरे प्रकारसे काम चलाया ही नहीं जा सकता। मैं चाहता हूँ कि मेरे इस निर्णयका कारण सब लोग समझ लें। यह सभा एक संस्थाका श्रीगणेश करने के लिए बुलाई गई थी। यह सार्वजनिक सभा किए बिना भी किया जा सकता था; क्योंकि संविधान गोरक्षा परिषद्[२] द्वारा नियुक्त की हुई समितिने बनाया था और वह समिति उसे स्वीकार करके तुरन्त अ. भा. गोरक्षा सभाका श्रीगणेश कर सकती थी। परन्तु ऐसा करने के बजाय संविधानको अधिक महत्त्व देनेके उद्देश्यसे उसे स्वीकार करनेके लिए सार्वजनिक सभा की गई। ऐसी सभामें किसी नियम-विशेषका विरोध व्यक्त नहीं किया जा सकता। पर हाँ, जो ऐसी संस्थाको न चाहता हो अथवा जिसे वह संविधान ही पसन्द न हो वह सारी संस्था या सारे संविधानके खिलाफ अपनी राय जाहिर करनेका हक रखता है और मैंने अध्यक्षको हैसियतसे विरोध करनेवाले महाशयको यही हक दिया था।

मेरा भाषण अन्यत्र दिया गया है।[३] मैं उसकी ओर पाठकोंका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। मेरे लिए गोरक्षा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। मेरा यह मत है कि हमने गोरक्षा-जैसे महत्त्वपूर्ण प्रश्नपर पूरी तरह विचार नहीं किया है। गोरक्षाके नामपर प्रचलित अधर्म किस तरह रोका जा सकता है? जब मैं इस सम्बन्धमें विचार करने बैठता हूँ तब मेरी बुद्धि चकरा जाती है। श्रद्धावान् हिन्दू गोरक्षाके नामपर लाखों रुपया देते हैं। किन्तु उससे गायोंकी रक्षा तो नहीं होती। जहाँ गोरक्षा धर्म माना जाता है, वहीं गायोंकी कमसे-कम रक्षा होती है—न गायोंका वध बन्द होता है और न गायपर होनेवाले अत्याचार । वधके लिए गायको बेचनेवाले भी हिन्दू हैं और उसपर अत्याचार करनवाले भी हिन्दू हैं। रक्षाके अनेक उपाय

 
  1. यह सभा गांधीजीकी अध्यक्षतामें २८ अप्रैल, १९२५ को हुई थी; देखिए. खण्ड २६, पृष्ठ ५४९-५३।
  2. यह परिषद् बेलगाँवमें गांधीजीको अध्यक्षतामें २८ दिसम्बर, १९२४ को हुई थी; देखिए खण्ड २५ पृष्ठ, ५४९-५५।
  3. देखिए खण्ड २६, पृष्ठ ५४९-५३।