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भाषण : आंग्ल-भारतीयोंकी सभामें

प्रणालीके संचालकों और उस प्रणाली द्वारा शासित लोगों, दोनोंको समान रूपसे गिराती है, नष्ट करनेमें लगा रहा हूँ।

लेकिन मेरे विचारमें जहाँ हम मानते हैं कि हममें इस अत्यन्त बुनियादी प्रश्नपर ही मतभेद हो सकता है वहाँ हमें यह खोजनेका भी प्रयत्न करना चाहिए कि क्या आपके और मेरे बीच——आपके और इस सुन्दर देशमें (यदि मैं ऐसा कह सकूँ) रहनेवाले विशाल जनसमुदायके बीच——कई बातें ऐसी नहीं हैं जिनपर हम सहमत हो सकते हैं। भारतका भविष्य अन्ततः क्या होगा, यह हम नहीं जानते; या जानते हैं तो केवल इतना ही कि उसके भविष्यका निर्माण करना हमारे हाथमें है। भारतके साथ हम सबका भाग्य बँधा है। हम जैसा चाहेंगे उसका भविष्य वैसा ही होगा। किन्तु हम इससे अधिक नहीं जानते, क्योंकि हमारा उन करोड़ों लोगोंके दिमागपर कोई नियन्त्रण नहीं है, जिनसे भारत बना है। किन्तु प्रत्येक व्यक्तिको आशावादी बनना चाहिए और तभी इस देशका भविष्य उज्ज्वलतम हो सकता है। इसका अर्थ यह है कि आज प्रत्येक व्यक्तिको अपने-आपसे यह कहनेमें समर्थ होना चाहिए कि, 'मैं इस देशके लिए जीवित हूँ, मैं इस देशके लिए ही मरूँगा।' इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप इस प्रश्नपर सेवाभावसे विचार करें और जब आपमें वह सेवाभाव होगा तब हम इस विघ्नकारी तत्त्व [वर्तमान शासनप्रणाली]को यहाँ से हटा सकते हैं। जब कोई आदमी सचमुच, सेवा करना चाहता है, तब उसके लिए 'बफादारी' या 'गैरवफादारी'का महत्त्व अधिक नहीं रहता।

मैं आज यहाँ अत्यन्त विनम्रताके साथ आपके प्रति पूर्ण मैत्री और शुभाकांक्षाकी भावना लेकर आया हूँ। अपने निरन्तर भ्रमणमें मैं केवल हिन्दुओंसे या केवल मुसलमानोंसे ही नहीं मिला हूँ बल्कि मैंने जानबूझकर सभी प्रकारके और सभी स्थितियोंके लोगोंसे सम्पर्क स्थापित किया है। मुझे विश्वास है कि मैं उन सभी लोगोंसे मिला हूँ जो मुझसे मिलना चाहते थे, किन्तु अल्पसंख्यकोंसे मिलनेके लिए तो मैं स्वयं अपनी ओरसे आगे बढ़ा हूँ। चूँकि मुसलमान अल्पसंख्यक हैं, इसलिए भारतमें बहुसंख्यक लोगोंके प्रतिनिधिके रूपमें उनसे मैत्री करना मैं अपना कर्त्तव्य मानता हूँ; फिर चाहे वे मेरी सलाहको अस्वीकार ही क्यों न करें। आपका समुदाय संख्याकी दृष्टिसे उतना भी बड़ा नहीं है, और इसलिए मुझे जब कभी आपसे मिलनेका अवसर मिला है, मैंने आपसे मिलनेमें संकोच नहीं किया है। किन्तु मुझे यहाँ यह स्वीकार करना पड़ेगा कि आंग्ल-भारतीयोंने मेरी इस भावनाके अनुरूप खुले दिलसे अपना हाथ आगे नहीं बढ़ाया है।

आंग्ल-भारतीयोंसे मेरी मुलाकात सबसे ज्यादा रेलगाड़ियोंमें हुई है। क्योंकि कारण कुछ भी हो उन्हें सार्वजनिक सभाओंमें आनेमें संकोच होता है। इसका कारण शायद उनका यह खयाल है कि इन सभाओंमें गैरवफादार लोग इकट्ठे होते हैं। वफादारीको अपना सिद्धान्त बना लेनेके बाद आपको इन सभाओंमें आनेसे अरुचि होगी ही। किन्तु रेलगाड़ियोंमें तो मैं आपसे मुलाकात करनेमें कामयाब रहा हूँ।

आंग्ल-भारतीय भारतीयोंसे किस तरह अलग हो गये हैं, इसका एक उदाहरण देते हुए श्री गांधीने कुछ आंग्ल-भारतीय युवकोंके साथ अपनी भेंटका सजीव वर्णन