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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किया। उन्होंने कहा कि कुछ आंग्ल-भारतीय युवक और मैं एक ही गाड़ीमें अजमेरसे आ रहे थे। उन्होंने जबतक मुझे नहीं पहचाना तबतक वे अपने आम बोलचालकी अंग्रेजी अपभाषाका उपयोग करते रहे और मुझे उसे सुननेका अवसर देते रहे। किन्तु जैसे ही उन्होंने मुझे पहचाना तो उनका यह सहजभाव लुप्त हो गया और वे शिष्टताका प्रदर्शन करने लगे। और इन लड़कोंके व्यवहारसे भी मुझे आप लोगोंके आम जनतासे पृथक् होनेका पर्याप्त प्रमाण मिला। उनमें से एक युवकको भारतीय मिठाइयाँ अच्छी लगती थीं; किन्तु वह दूसरोंके सामने मिठाई खरीदनेका साहस नहीं करता था। उसने कहा, 'मैं ये मिठाइयाँ केवल तभी खाता हूँ जब कोई दूसरा वहाँ नहीं होता।' वह अपने-आपको भारतीय नहीं मानता था और यह नहीं चाहता था कि भारतीय उसकी गतिविधियाँ देखें । इसका कारण आपकी शिक्षा-दीक्षा है।

आप लोगोंके शरीरोंमें भारतीय रक्त है; इसपर आपको गर्व होना चाहिए, इसमें लज्जित होनेकी जरूरत नहीं है, पर मैं जानता हूँ कि जब कोई आपको इस बातकी याद दिलाता है तो आपको दुःख होता है।

श्री गांधीने इसके बाद एक आंग्ल-भारतीय युवककी चर्चा की और कहा उस युवकने मेरे सामने अपना हृदय खोलते हुए कहा था कि मुझे ४०० रुपये मिल रहे हैं, किन्तु इनसे मैं अपना गुजारा मुश्किलसे कर पाता हूँ। मुझे अपनी आयसे अधिक व्यय करना पड़ता है, क्योंकि मेरे लिए यह आवश्यक है कि मैं पूरा यूरोपीय दिखूँ।

उसकी गाथा सुनकर मेरा कलेजा टूक-टूक हो गया। मैंने अपने मनमें कहा कि यह मानवीयताके प्रति अपराध है। वह युवक ईसाई था और उसके आचरणमें कोई अनुचित बात नहीं थी; और ऊपरसे सब ठीक होनेपर भी उसके हृदयको यह घुन खाये जा रहा था कि वह कृत्रिम जीवन बिता रहा है।

मैंने आपको दो बड़े ही सटीक उदाहरण दिये। अब अपना मार्ग आपको ही चुनना चाहिए। आप क्या करेंगे? क्या आप असम्भव कार्यको करनेका प्रयत्न करेंगे या वैसे बनेंगे जैसा आपको होना चाहिए, अर्थात् क्या आप पूरे भारतीय बनेंगे? मैं आपसे एक बात और कह दूँ कि यदि आप दक्षिण आफ्रिका, आस्ट्रेलिया या किसी भी उपनिवेशमें जायें तो वहाँ जैसा व्यवहार मेरे साथ होगा वैसा ही आपके साथ भी होगा। आप रंगदार लोगोंके वर्गमें रखें जायेंगे और आपकी कोई सामाजिक प्रतिष्ठा नहीं होगी। आपमें से जिन लोगोंकी चमड़ी गोरी है वे प्रवास अधिकारीको धोखा दे सकते हैं, किन्तु आपके सम्बन्धियों और सन्तानसे आपका भेद खुल सकता है। स्थिति यही है। वहाँ रंग सम्बन्धी प्रतिबन्ध बड़े ही सख्त हैं। वहाँ आपकी गिनती भी नैतिक दृष्टिसे कोढ़ियोंमें की जायेगी। श्रीं मलान अब कहते हैं कि वे हमको दक्षिण आफ्रिकासे भगायेंगे नहीं, बल्कि हमें भूखों मारेंगे जिससे हम स्वयं भाग जायेंगे। और वे शुद्ध पाखंडका सहारा लेंगे। यह दुर्भाग्यपूर्ण प्रतिबन्ध, जैसा लॉर्ड मॉर्ले कहते हैं, हमपर इंग्लैंडमें भी लागू होता है। अब इसके विरुद्ध लड़ना आपके हाथ है। यदि आप अपने भाग्यको भारतके उस जनसाधारणसे, आप जिसके अंश हैं, जोड़