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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रह सकती हैं। यह श्रेय आपको ही मिल सकता है, जरूरत इस बातकी है कि आप इसपर अमल करें।

मैंने आपके कर्त्तव्यकी बात कही। आप सम्भवतः जानना चाहेंगे कि मेरा कर्त्तव्य क्या है। हाँ, यदि मैं भारतका वाइसराय बना, जो मेरे खयालसे होनेवाली बात नहीं है तो मैं आपको और दूसरे अल्पसंख्यक लोगोंको चुनावका अधिकार देकर पूछूँगा कि आप क्या चाहते हैं। मैं सभी दलोंके नेताओंको बुलाऊँगा और उनके सामने अपना प्रस्ताव रखूँगा। फिर मैं सबसे पहले आपमें से उन लोगोंको बुलाऊँगा जो संख्याकी दृष्टिसे सबसे कमजोर हैं और उनसे पूछूँगा कि आप सब क्या चाहते हैं। नौकरियोंमें मैं एक समुचित परीक्षापर जोर दूँगा, अर्थात् मैं उम्मीदवारसे केवल यह पूछूँगा कि आपमें कितना पुरुषत्व या स्त्रीत्व है? क्या आपमें अवसरके अनुरूप कार्य करनेकी योग्यता है? जो स्त्री या पुरुष इस परीक्षामें उत्तीर्ण हो जाते हैं, मैं उनमें से सबसे पहले सबसे छोटे अल्पसंख्यकवर्गके व्यक्तिको चुनूँगा। मैं इस तरह सब अल्पसंख्यकोंको न्यायसंगत आधारपर भारतके कल्याणका ध्यान रखते हुए तरजीह दूँगा। जब मैं इस शब्दावलिका उपयोग करता हूँ तब मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि कोई शब्दजाल नहीं रच रहा हूँ। मेरा उद्देश्य यह नहीं होगा कि केवल हिन्दुओंका कल्याण हो। भारतके कल्याणका अर्थ हिन्दुओं और मुसलमानोंका या किसी खास जातिका नहीं, बल्कि समस्त भारतका कल्याण है। मैं आपकी चापलूसी या मनुहार नहीं करूँगा, बल्कि जो आपका देय होगा वह आपको दे दूँगा।

श्री गांधीने इसके बाद कहा कि मेरी योजनाके अन्तर्गत सब अल्पसंख्यक जातियोंके हितोंकी तरह आंग्ल-भारतीयोंके हितोंकी भी रक्षा एक स्वैच्छिक समझौतेके द्वारा की जायेगी। इस समझौतेका समर्थन कानून द्वारा नहीं किया जायेगा जिसमें सदा तीसरे पक्षका होता निहित होता है; बल्कि यह समझौता बिलकुल स्वैच्छिक होगा, जैसा मेरा और स्वराज्यवादियोंका समझौता है। यह समझौता ऐसा ही होगा जैसे समझौतेका प्रस्ताव मैंने दिल्लीमें मुसलमानोंके सन्मुख रखा था। जबतक आप लोगोंका बहुसंख्यक जातियोंकी न्याय भावनामें विश्वास नहीं है तबतक आपको ऐसे स्वैच्छिक समझौतेका संरक्षण प्राप्त होना चाहिए। जो पक्ष इस समझौतेमें सम्मिलित होंगे वे उसके अनुसार कार्य करनेके लिए कर्त्तव्यबद्ध होंगे। यदि वे समझौतेकी उपेक्षा करेंगे तो वे स्वयं खतरेमें पड़ेंगे। आप आंग्ल-भारतीयोंसे मुझे यही कहना है कि यदि इस समझौतेका पालन न किया जाये, यदि पवित्र वचनोंको पूरा न किया जाये तो आप उन लोगोंसे, जो समझौतेको तोड़ें, बदला ले सकते हैं। अन्तमें श्री गांधीने कहा :

मैंने अपना हृदय चीरकर रख दिया है। जो-कुछ मेरे मनमें था वह मैंने बिना साज-सँवारके मैत्रीभावसे आपके सन्मुख रखा है। मेरी इच्छा है कि आप भी इसपर ऐसी ही भावनासे विचार करें।

श्री गांधीने इसके बाद लोगोंको प्रश्न पूछनेके लिए आमन्त्रित किया। इनमें सबसे पहले यह प्रश्न डाक्टर मोरेनोने किया: ऐसा लगता है कि भारतीयकरणकी