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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैंने विधेयकके समर्थकोंमें अपना नाम देनेसे केवल इसलिए इनकार कर दिया कि मैं अपमानित होना नहीं चाहता था। जब मैं यह जानता था कि यह बात बिलकुल निश्चित है कि विधेयक कूड़के ढेरमें फेंक दिया जायेगा, और विश्वास था कि उसकी कोई दूसरी गति नहीं हो सकती, तब मेरे लिए उसपर हस्ताक्षर करना सम्भव नहीं था। मैं पहले बहुत अपमान सह चुका हूँ, किन्तु मैं स्वयं कभी अपमानित होने नहीं गया। जब भी मेरे ऊपर अपमान थोपा गया, मैंने उसे हँसते-हँसते सहा। लेकिन इस विशिष्ट मामलेमें मेरा खयाल यह था कि यह तो अपमानको आमंत्रित करना होगा और मैं ऐसा करनेके लिए तैयार नहीं था। असलमें मुझे उसी दिन इसका संकेत मिल गया था।

उस संकेतका उल्लेख करते हुए श्री गांधीने कहा :

मैंने भारत सरकारके सम्मुख एक अत्यन्त व्यावहारिक, निर्दोष-सा सुझाव रखा था। पहले देशबन्धु दासने यह प्रस्ताव रखा था। आप जानते हैं कि राजनीतिक बन्दियोंके मामलेमें उनकी दिलचस्पी कितनी गहरी थी। मैंने सरकारसे कहा, 'क्या वह एक अनुग्रहका कार्य करेगी; इससे समस्त राष्ट्रपर बड़ा अच्छा प्रभाव पड़ेगा? क्या वह बन्दियोंको मुक्त कर देगी?' यदि सरकार ऐसा करती तो उससे दो उद्देश्य सिद्ध होते। यदि इन राजनीतिक बन्दियोंके मनमें कोई कटुता होती तो वह इससे दूर हो जाती, क्योंकि वे यह अनुभव करते कि उनको स्व॰ देशबन्धुके सम्मानार्थ मुक्त किया गया है और उनपर जो विश्वास किया जाता वे उसे भंग न करते। और यह सरकारकी सबसे बड़ी नैतिक विजय होती और उससे बातचीत के लिए वातावरण बन जाता। किन्तु नहीं। लॉर्ड बर्कनहेडने कहा कि वैरभाव दूर करनेके उद्देश्यसे भारतीय जो भी सुझाव दें वे उसपर विचार करनेके लिए तैयार हैं; किन्तु जो सुझाव दिया गया है वह व्यावहारिक नहीं है। मैं आपसे कहता हूँ कि मैंने जो सुझाव दिया है, उससे अधिक व्यावहारिक सुझाव देनेकी सूझबूझ मुझमें नहीं है। किन्तु वह रद्दीको टोकरीमें फेंक दिया गया है। इसलिए यदि ये छोटी-छोटी चीजें नहीं मिल सकतीं तो उस बड़े भारतीय राष्ट्रमण्डल विधेयकपर विचार करनेसे क्या लाभ? श्रीमती बेसेंट प्रबल आशावादी हैं, और यद्यपि उनकी दिशा विपरीत है, वे मेरी ही तरह यह सोचती हैं कि उन्हें कार्य जारी रखना ही चाहिए।

एक अन्य मित्रने पूछा है कि आप संक्रमण-कालके लिए क्या सुझाते हैं; उदाहरणार्थ यदि हम अपना 'आंग्ल' विशेषण त्याग दें और कांग्रेसमें सम्मिलित हो जायें तो आप क्या करेंगे? उस अवस्थामें कुछ छोटे-मोटे विशिष्ट अधिकार, जो हमें इस समय प्राप्त हैं, छिन जायेंगे और उनके बदले हमें कुछ न मिलेगा।

यह प्रश्न अत्यन्त उचित है। आप कहते हैं कि कुछ बातोंके सम्बन्धमें आप यूरोपीयोंके वर्गमें रखे गये हैं। मैंने आपसे कहा है कि आप इन विशिष्ट अधिकारोंको त्याग दें। आपने 'भारतीय सहायक सेना'के लिए अपनी पात्रताका उल्लेख किया है। मैं सुझाव देना चाहता हूँ कि आप गर्वपूर्वक कहें: 'हम इनमें से कोई विशिष्ट