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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

समझानेकी भी मुझे जरूरत नहीं होती। मैं जब पूर्ण मनुष्य हो जाऊँगा, तब मुझे बात कहनेकी देर न होगी कि राष्ट्र उसे सुन लेगा। मैं इस पूर्णताको सेवाके द्वारा प्राप्त करना चाहती हूँ।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १३-८-१९२५
 

२७९. टिप्पणियाँ

दादाभाई शताब्दी

दादाभाई नौरोजीकी सौवीं जयन्ती आगामी ४ सितम्बरको पड़ती है। श्री भरूचाने समयपर ही हमें इसकी याद दिला दी है। दादाभाईको उनके जीवनकालमें हम भारतका पितामह कहते थे और यह ठीक भी था। वे भारतीय राष्ट्रीयताके जन्मदाता थे। सबसे पहले उन्होंने ही कांग्रेसकी शब्दावलिमें 'स्वराज्य' शब्द जोड़ा था। वे स्वराज्यके उतने ही बड़े पैरोकार थे जितने कि स्वयं लोकमान्य। देशके प्रति उनकी सेवा सुदीर्घ, अविचल और निःस्वार्थ थी। उन्होंने हमको जनताकी दरिद्रताको ठीक-ठीक समझना सिखाया। इस विषयके सम्बन्धमें लिखे गये उनके लेख भारतीय देश-भक्तोंके लिए आज भी पाठ्यपुस्तककी भाँति हैं। उन्होंने जो आँकड़े पेश किये थे वे आज भी अकाट्य हैं। उनके चरित्रपर कहीं कोई दाग नहीं। भारतमाताके इस एक उच्चादर्शपूर्ण पुत्र दादाभाई नौरोजीकी जन्म-शताब्दी हम किस रूपमें मनायें? कांग्रेसके झण्डेके नीचे आ चुकनेवाले सभी स्थानोंमें सभाओंका आयोजन तो होना ही चाहिए। मैं चाहता हूँ कि ये सभाएँ कामकाजी किस्मकी हों; और हमें निश्चित रूपसे अपने ध्येयकी ओर थोड़ा आगे ले जा सकें। हालाँकि दादाभाई पूरी तौरपर शिक्षित भारतके ही प्रतिनिधि थे, फिर भी उनको जनताका पूरा-पूरा खयाल था और वे उसके हितकी बात ही सोचते थे। उनकी आत्मा जनतामें ही रमी रहती थी। उन्होंने जिस स्वराज्यका सपना देखा था उसमें आम जनताका आर्थिक उत्थान भी शामिल था। चरखे और खद्दरके अलावा अन्य कौन-सी ऐसी चीज है जो समाजके उच्च वर्गीको सर्वसाधारणके अधिक निकट ला सकता है? मेरा सुझाव है कि इन सभाओंमें देशबन्धु-स्मारक, चरखा और खद्दरके इस्तेमालके बारेमें प्रस्ताव पास किये जा सकते हैं। जहाँ भी खद्दरका अतिरिक्त भण्डार मौजूद हो, वहाँ स्वयंसेवक घूम-घूमकर खद्दर बेचनेके लिए एक पूरा दिन निश्चित कर सकते हैं। और जिन लोगोंके पास अवकाश हो, वे आजसे ही रोज दिनभर बढ़िया किस्मका सूत कातनेमें लगा सकते हैं और फिर उसे इन सभाओंमें राष्ट्रको अर्पित कर सकते हैं।

ये मेरे सुझाव ही हैं। जरूरी नहीं कि इनको सभी लोग स्वीकार कर लें। जिन लोगोंको ये पसन्द आयें वे अपने ढंगसे चल सकते हैं; पर आशा है कि सभी दल इस जन्म-शताब्दीको बिना किसी भेदभावके यथोचित ढंगसे मनायेंगे।