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चीनकी दुर्गति

मैं आशा करता हूँ कि 'यंग इंडिया' के पाठकोंने कैंटन (चीन) की राष्ट्रीय सरकारके परराष्ट्र विभागके अधिकारीका भेजा लम्बा तार अन्य पत्रोंमें पढ़ ही लिया होगा। यह तो स्पष्ट ही है कि वह दुनियाके कई देशोंमें भेजा गया है।

मैं नहीं कह सकता कि चीनको उसकी इस विपत्तिमें भारतवर्ष क्या सहायता दे सकता है। हमें तो खुद ही सहायताकी आवश्यकता है। यदि अपने घरके काम-काजमें हमारी कुछ चलती होती तो हम भारतीय सिपाहियोंकी बन्दूकोंसे चीनके निर्दोष विद्यार्थियों तथा अन्य लोगोंके अन्धाधुन्ध भूने जानेके इस अपमान और पतनकारक दृश्यको——यदि तारमें वर्णित कथाको सच मानें तो——कभी सहन नहीं कर सकते थे। फिलहाल हम तो सिर्फ परमात्मासे यही प्रार्थना कर सकते हैं कि वह उन्हें इन तमाम विपत्तियोंसे उबारे। परन्तु चीनकी स्थिति हमें इस बातकी याद दिलाती है कि हमारी यह गुलामी अकेले हमको ही हानि नहीं पहुँचा रही है, हमारे पड़ो- सियोंको भी इससे हानि पहुँचती है। इससे यह बात भी बड़े जोरके साथ प्रत्यक्ष होती है कि भारतवर्षको अकेले उसीकी लूटके लिए पराधीन नहीं रखा जा रहा है, बल्कि उससे ग्रेटब्रिटेन महान् और प्राचीन चीन देशको लूटने में भी समर्थ बनता है।

यदि किसी जिम्मेवार चीनवासी के हाथमें ये पंक्तियाँ पहुँच जायें तो मैं उसका ध्यान उन साधनों और उपायोंकी ओर दिलाना चाहता हूँ, जिनका उपयोग हम यहाँ भारतमें कर रहे हैं। वे हैं अहिंसा और सत्य। चीनी इस बातको समझ लें कि संख्याके लिहाजसे उनका राष्ट्र पृथ्वीपर सबसे बड़ा है। उनकी प्राचीन परम्परा गौरव- शाली है और वे हमारी तरह पौरुषहीन भी नहीं बनाये जा चुके हैं। यदि वे सिर्फ अहिंसा और सत्यकी नीतिका अनुसरण करें तो उनकी विजय केवल निश्चित ही नहीं बल्कि बहुत निकट समझिए। निश्चय ही ४० करोड़ आत्माओंके राष्ट्रको यूरोपीयों तथा जापानियोंकी महत्वाकांक्षाके बोझसे कुचले जानेकी कोई आवश्यकता नहीं। चीन अपने बिलकुल आन्तरिक शान्तिमय प्रयत्नोंके द्वारा बाहरी लूटसे अपनेको मुक्त कर सकता है। यदि वह विदेशी मालके बहिष्कारमें सफल हो जाये तो इससे विदेशी सत्ताओंके सामनेसे, जिस प्रलोभनके लिए वे उसपर अपना आधिपत्य कायम रखना चाहते हैं, वह दूर हो जायेगा।

अखिल भारतीय चरखा संघ

कांग्रेसके मुख्यतः राजनीतिक संस्था बन जानेके बाद भी यदि वह किसी-न-किसी रूपमें जनताका प्रतिनिधित्व करना चाहेगी तो भारतमें चरखा संघ स्थापित किये बिना काम न चलेगा। चरखा संघ मताधिकारके कताई-सम्बन्धी अंशको नियमित और विकसित करेगा तथा कताई सदस्योंके दिये गये सूतको ग्रहण करेगा और केवल हाथकताई और खादीपर अपनी शक्ति केन्द्रित करेगा।

यदि इसकी स्थापना हुई तो यह संघ एक बिलकुल व्यावसायिक संस्था होगी। उसे एक स्थायी मण्डल होना चाहिए और कांग्रेसकी राजनीतिके उतार-चढ़ावका उसपर