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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किसी तरह कोई असर न होना चाहिए। इसलिए उसका कार्याधिकारी मण्डल भी काफी स्थायी किस्मका होना चाहिए। उसे खादी सेवासंघ भी कायम करना होगा। वह दूर-दूरके देहातमें चरखेका सन्देश ले जाकर ग्राम-संगठनका प्रतिनिधि होगा और उसे विकसित करेगा तथा पहली बार देहातियोंसे धन खींचकर शहरोंमें ले जानेके बजाय देहातियोंकी आयमें वृद्धि करेगा। इसके द्वारा हम शान्तिके साथ देहातमें प्रवेश करेंगे और कुछ समय बाद वहाँसे वास्तविक राष्ट्रीय जीवनका प्रवाह शुरू हो जायेगा। इसे एक ऐसा जबरदस्त सहयोगी-प्रयत्न होना चाहिए जैसा कि दुनियामें अभीतक नहीं हुआ। इसमें यदि बुद्धिका पर्याप्त प्रयोग किया गया, साधारण त्यागसे काम लिया गया, ईमानदारीका अवलम्बन किया गया और धनवानों और मध्यम वर्गके लोगोंकी तरफसे साधारण सहायता भी प्राप्त हो गई तो इसकी सफलता निश्चित है। देखें, भारतके भविष्यमें क्या बदा है।

एक गलतफहमी

एक प्रतिष्ठित मुसलमान सज्जनने एक अन्य व्यक्तिकी मार्फत, जो हम दोनों ही का मित्र है, मुझे दो प्रश्न भेजे थे जिनपर १६ जुलाईके[१] 'यंग इंडिया' में चर्चा की गई थी। इनके सम्बन्धमें इस मित्रने मुझे लिखा है कि मैंने दूसरे प्रश्नको गलत समझा है।

यदि उन्होंने वह प्रश्न पूछा होता तो मैं आपको उसका उत्तर देनेके लिए एक मिनट भी बर्बाद करनेके लिए न कहता। यदि कोई मुसलमान आपसे वह प्रश्न पूछे तो वह स्पष्ट उसकी अशिष्टता ही होगी, लेकिन उस बेचारेने अपना दूसरा प्रश्न उस रूपमें पूछा ही नहीं था। उसने तो यही कहा था, 'महात्माजी दोनों सम्प्रदायोंके बीच प्रेम और एकताकी बात करते हैं, किन्तु इस समय इससे काम नहीं चलेगा। उन्हें अभीष्ट एकता प्राप्त करनेके लिए कोई ठोस योजना बनानी पड़ेगी, कोई ऐसी योजना जो बंगालमें श्री चित्तरंजन दास द्वारा किये गये समझौतेसे मिलती-जुलती हो।'

मुझे दुःख है कि मैंने प्रश्नको गलत समझा, यद्यपि मेरा खयाल यह है कि उस प्रश्नको मैंने जिस रूपमें समझा था उससे मैं इतना चौंक गया था कि मैंने अपने मित्रसे उसे दूसरी बार लिखनेके लिए कहा था। फिर भी यदि प्रश्नकर्ता मित्रने दिल्ली सम्मेलनकी कार्रवाई और उसमें रखी हुई मेरी ठोस योजना पढ़ी और समझी होती तो इस प्रश्नको वर्तमान रूपमें भी पूछनेकी जरूरत नहीं थी। मैं उस योजनापर अब भी कायम हूँ और महसूस करता हूँ कि जब हममें फिर समझ आ जायेगी तब हमें इसीका आश्रय लेना पड़ेगा। संक्षेपमें योजना इस तरह है : एक निर्वाचक मण्डल ऐसे मताधिकारके अन्तर्गत बनाया जाना चाहिए जिसमें वे सब लोग आ जायें जो मतदाता सूचीमें शामिल किये जानेकी जिम्मेदारियोंको समझ सकते हों और जो संख्याकी दृष्टिसे

  1. यहाँ ९ जुलाई होना चाहिए। देखिए "टिप्पणियों", ८-७-१९२५ का उपशीर्षक "दो कठिनाइयाँ"।