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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
अपने चरखके सुतसे तैयार कम्बल, दरियाँ, कोटके कपड़े और अन्य कई कपड़े दिखलाये थे और मुझे उनके सामने खुलकर अपनी भावनाएँ व्यक्त करनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ था। मुझे भुलाये नहीं भूलता कि उन्होंने कितने उत्साह और ध्यानके साथ चरखे और कताईके बारेमें बातें कीं और सुनी थीं। उन्होंने ही मुझे समझाया था कि शिक्षित नवयुवकोंमें भी चरखेको लोकप्रिय बनानेकी अपार सम्भावनाएँ मौजूद हैं। चरखेमें मैंने जो थोड़ा-सा सुधार किया है, उसे देखकर उनको सचमुच बड़ी प्रसन्नता हुई थी और अपने स्वभावके अनुरूप हो उन्होंने मुझसे एक ऐसी योजना तैयार करनेका अनुरोध किया था जिसके अन्तर्गत वे मेरे चरखेको शुरूमें प्राथमिक पाठशालाओंमें और बादमें बड़े-बड़े क्षेत्रोंमें चालू करा सकें। इसका खर्च कलकत्ता निगमको उठाना था। मेरे पास तब वैसी कोई योजना तैयार नहीं थी और इसके तैयार होनेसे पहले ही कालने उनको हमसे छीन लिया। अब पता नहीं इस योजनाको अमली रूप दिया भी जा सकेगा या नहीं, पर मैं इतना अवश्य कह देना चाहता हूँ कि जो भी इस कामको आगे बढ़ायें, मैं उनको अपनी विनम्र सेवाएँ अर्पित करनेको तैयार हूँ।

मैं इस चरखेको जानता हूँ। इसे कुर्सी पर बैठे-बैठे पैरोंसे चलाया जा सकता है और दोनों हाथ खाली रह सकते हैं। परन्तु अभी मैं सार्वजनिक उपयोगके लिए इसकी सिफारिश नहीं कर सकता, क्योंकि यह प्रति घंटे जितना सूत कातता है वह साधारण चरखेसे कहीं कम रहता है।

प्रियबाबूके चरखेसे प्रति घंटे अधिकसे-अधिक ३०० गज सूत काता जा सकता है, जबकि खादी प्रतिष्ठान द्वारा तैयार चरखेसे ८५० गजतक काता जाता है। यदि प्रियबाबू इसमें कुछ ऐसा सुधार कर सकें जिससे कि इसके द्वारा खादी प्रतिष्ठानके चरखेके मुकाबले ज्यादा सूत काता जा सके तो फिर इसे लोकप्रिय बनानेमें कोई बाधा नहीं पड़ेगी।

बहुत महँगा

जमशेदपुरके एक पत्रलेखकने लिखा है कि खद्दर साधारण लोगों या मध्यम-वर्गके लोगोंके लिए बहुत महँगा है; यह ज्यादा नहीं टिकता; यह बहुत जल्दी मैला हो जाता है और इसे साफ करनेमें अतिरिक्त खर्च आता है। उन्होंने आगे लिखा है कि क्या आप कृपा करके विस्तारसे यह बतायेंगे कि इस स्थितिमें हम जैसे लोग खद्दर कैसे पहन सकेंगे?

यद्यपि इस तरहके सवालोंका जवाब इन पृष्ठोंमें पहले दिया जा चुका है, फिर भी उन्हें बार-बार दोहराना व्यर्थ नहीं जायेगा। इस समय एक गज खद्दर निस्सन्देह मिलके एक गज कपड़ेसे महँगा है। लेकिन मेरा अनुभव प्रायः यह है कि जिन लोगोंने खद्दर अपना लिया है उसकी पोशाकमें जाने या अनजाने सादगी आ गई है। वे जब मिलका कपड़ा पहनते थे तब उन्हें जितने कपड़ेकी जरूरत पड़ती थी, उन्हें अब