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खद्दर पहननेपर उतने कपड़ेकी जरूरत नहीं रहती। खद्दर मिलके कपड़ेके बराबर नहीं चलता, ऐसा अनुभव सभी लोगोंका नहीं है। शुरू-शुरूकी हालतमें हाथका कता सूत कम बटदार होता था। इसलिए उस सूतसे बना हुआ खद्दर निस्सन्देह टिकाऊ नहीं होता था। लेकिन अब उसकी किस्म बेहतर हो गई है। मैं समझता हूँ कि यदि खद्दर घरपर धोया जाये तो वह धोबीसे घुलाये जानेकी अपेक्षा दूना ज्यादा चलेगा। मैं मानता हूँ कि यदि खद्दर धुलनेके लिए धोबीको दिया जाता है तो उसकी धुलाईका खर्च मामूली सूती कपड़ेकी धुलाईके खर्चसे ज्यादा आयेगा। इसका एकमात्र उपाय यह है कि खद्दर घरपर ही धोया जाये। इसमें परेशानी माननेकी जरूरत नहीं है। खद्दरको रात-भर साबुनके पानीसे भिगोकर रख देनेसे वह बहुत जल्द बिलकुल साफ हो आता है।

पत्रलेखक जब यह कहते हैं कि खद्दर बहुत जल्दी मैला हो जाता है तब मेरा खयाल है कि उसका मतलब यही होता है कि सफेद होनेसे उसपर मैल ज्यादा दिखता है। यदि उस मैलको छिपानेका खयाल हो तो इसका उपाय यह है कि जिस तरह मिलके कपड़ेको रँगा जाता है, बिलकुल उसी तरह इसको भी रंग लिया जाये। इस समय रंगीन खद्दर बहुत बड़ी मात्रामें उपलब्ध है। लेकिन मैं यह बात मान लेता हूँ कि यदि मध्यमवर्गके लोग कीमत और दूसरी बातोंमें खद्दरकी तुलना मिलके बने हुए कपड़ेसे करेंगे तो खद्दर लोकप्रिय नहीं बन सकता। मध्यमवर्गके लोगोंको खद्दरके उपयोगकी प्रेरणा राष्ट्रीयताके विचारसे मिलनी चाहिए और उनसे आशा की जाती है कि वे उसको लोकप्रिय बनानेके लिए स्वयं असुविधा भी सह लेंगे।

यदि सरकार जनताकी होती तो वह कानून बनाकर खद्दरकी रक्षा करती। लेकिन यह देखते हुए कि सरकार विदेशी है और यदि वह खद्दरकी विरोधी नहीं है तो उसके प्रति उदासीन अवश्य है। खद्दरके राष्ट्रीय महत्त्वमें विश्वास रखनेवाले लोगोंका कर्त्तव्य है कि वे असुविधाएँ सहन करके और ज्यादा खर्च उठाकर भी खद्दरको जितना चाहिए उतना संरक्षण दें। खद्दरको इस प्रकार संरक्षण देनेकी जरूरत भारतमें उसके सर्वत्र फैल जानेतक रहेगी। केवल ५ वर्ष पहले मैंने बहुत मोटा और खराब बुना हुआ खद्दर १७ आने गज बेचा था। अब उतना बुरा खद्दर कहीं दिखाई नहीं पड़ता। इसका विकास आश्चर्यजनक तेजीके साथ हुआ है, यहाँतक कि भारतके उसी भागमें उससे अच्छा खद्दर अब नौ आने गज बिकता है। खद्दरकी कीमत कम करनेका पूरा प्रयत्न किया जा रहा है और यदि अखिल भारतीय देशबन्धु चरखा स्मारक सफल हो जाता है, और जो योजना इस समय विचाराधीन है वह कार्यान्वित कर दी जाती है तो मुझे आशा है कि कीमतें और गिर जायेंगी।

मैं चाहता हूँ कि पाठक उस बातको याद करेंगे जो मैंने चटगाँवमें कही थी। वह यह थी कि यदि खद्दर महँगा है तो स्वतन्त्रता उससे भी ज्यादा महँगी है और जो व्यक्ति जनसाधारणसे सहानुभूति रखता है वह यह नहीं चाहेगा कि उसे संक्रमण-कालमें खद्दरके लिए जो ज्यादा कीमत देनी पड़ती है वह जनसाधारणको न मिले।