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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अपमान और चरखा

एक पत्रलेखक लिखता है :

सौभाग्य या दुर्भाग्यसे एक धनी आदमीकी, जो एक सरकारी पदाधिकारी है, कुछ दिन पहले मुझसे मारपीट हो गई। इससे मेरी भावनाओंको ठेस पहुँची और उसने मुझे हरजाना दिया। मुझे उससे हरजानके रूपमें १० रुपये लेनेके लिए मजबूर होना पड़ा। मैं यह सोचता हूँ कि इस रकमका सर्वोत्तम उपयोग यही होगा कि मैं इसे आपको भेज दूँ और आप कृपा करके इससे उन लोगोंके लिए, जो सचमुच पात्र हों, चरखा खरीद दें।

दानी व्यक्तिने जो यह बुद्धिमानी-भरा निर्णय किया है इसपर उसे मैं बधाई देता हूँ। चूँकि यह पत्र मुझे उस दिन मिला जिस दिन मैंने अखिल भारतीय देशबन्धु स्मारकके लिए अपील प्रकाशित की और चूँकि इस स्मारकका उद्देश्य चरखेका सन्देश फैलाना है, इसलिए मैं इस रकमको खजाँचीको भेज रहा हूँ ताकि इस रकमसे जितने चरखे मिल सकें खरीदकर सुपात्रोंको दे दिये जायें।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ३०-७-१९२५
 

२८०. कांग्रेस और राजनैतिक दल

मैं श्री सत्यानन्द बोसके पत्रका नीचे लिखा अंश सहर्ष छाप रहा हूँ। बोस महाशय एक परखे हुए कांग्रेसी हैं और मेरा उनसे परिचय तभीसे है जब मैं दक्षिणी आफ्रिकामें था और जब उन्होंने मेरे स्वर्गीय साथी सोराबजी अडाजानियाको सहायता दी थी।

आपके कांग्रेसको स्वराज्यदलको सौंपनेके प्रस्तावसे लोगोंके मनमें कुछ आशंका पैदा हुई है।
कहा जा रहा है कि अबसे कांग्रेस स्वराज्यदल संगठनका पुछल्ला बन जायेगी और देशके सार्वजनिक जीवनमें उसका वैसा प्रमुख स्थान नहीं रहेगा। आपने उससे पिछले साल जो करार किया था उसमें कहा गया था कि स्वराज्यदल केन्द्रीय विधान सभामें तथा प्रान्तीय विधानसभाओंमें कांग्रेसकी तरफसे काम करेगा। उसे देखते हुए यह आशंका और भी समुचित जान पड़ती है।
निस्सन्देह, आपने उस पिछले करारको रद कर दिया है। परन्तु यह आशंका भी की जा रही है कि एक नये करारके द्वारा स्वराज्यदलको 'खुले शब्दों' में कांग्रेसके संचालन और नियन्त्रणका अधिकार दे दिया जायेगा।
मैं खुद तो इस बातपर विश्वास नहीं कर सकता कि आप या पण्डित मोतीलाल नेहरू इस मार्गको अपनानेका विचार करते हैं।