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कांग्रेसमें बेकारी

अब उनके रास्तेमें अनिवार्य कताई-सदस्यता बाधा नहीं डालेगी। उन्हें केवल अनिवार्य रूपसे खादीको अपनी राष्ट्रीय पोशाक मानना होगा। परन्तु सम्भव है कि अ॰ भा॰ कांग्रेस कमेटी मताधिकारके खादी-सम्बन्धी अंशको भी रद्द कर दे। यदि ऐसा अवसर भी आ जाये तो मैं उसके रास्तेमें बाधक न होऊँगा——हाँ, इसमें कोई शक नहीं कि इससे मुझे बहुत दुःख होगा, क्योंकि मैं मानता हूँ कि उस अवस्थामें शिक्षित भारतवासी उस एकमात्र प्रत्यक्ष और ठोस कड़ीको भी तोड़ डालेंगे जो उन्हें आम जनतासे जोड़ती है। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि अ॰ भा॰ कांग्रेस कमेटी खादीको कांग्रेसके मताधिकारमें स्थायी स्थान देगी। क्या हम घरेलू उद्योग-धन्धों और दस्तकारियोंको प्रोत्साहन नहीं देना चाहते? क्या हम उन लाखों बहनोंको, जो बेकार रहती हैं, और जो कुछ पैसे रोजी भी कमा सकें तो खुश होंगी, चरखेके द्वारा कुछ पैसोंकी आमदनी नहीं करने देना चाहते? मुझे मालूम हुआ है कि हाथकताई कांग्रेसके मताधिकारमें पैसेके विकल्पके रूपमें कायम रखी ही जायेगी। मैं समझता हूँ कि इसपर कोई आपत्ति नहीं हो सकती। ऐसी अवस्थामें यदि मेरे प्रस्तावोंको अ॰ भा॰ कांग्रेस कमेटी मंजूर कर लेगी तो हर शिक्षित भारतवासीके लिए कांग्रेसमें सम्मिलित होना और देशबन्धुकी मृत्यु और लॉर्ड बर्कनहेडके भाषणसे उत्पन्न परिस्थितिके अनुरूप एक संयुक्त राष्ट्रीय राजनैतिक कार्यक्रम बनाना शक्य हो जायेगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ३०-७-१९२५

२८१. कांग्रेसमें बेकारी

जब में अखिल भारतीय देशबन्धु स्मारकके उद्देश्यके सम्बन्धमें मित्रोंसे विचार-विमर्श कर रहा था तब कुछ मित्रोंने कहा, 'जो लोग जेलमें हैं, या निर्वासित हैं, और कांग्रेसजन असहयोगके कारण बेकार हैं और भूखों मर रहे हैं उनके आश्रितोंकी सहायता करना इस स्मारकका एक-मात्र नहीं तो एक उद्देश्य क्यों नहीं हो?' बंगालमें रहते हुए मेरे सामने यही सवाल अनेक रूपोंमें आ चुका है। मेरी रायमें इस कार्यके निमित्त जिस कोषका सुझाव दिया गया है उसे देशके तमाम दलोंसे और सारे देशमें एकत्र करना सम्भव नहीं है। राजनैतिक कैदियों और नजरबन्दोंके कुटुम्बियोंके भरण-पोषणका सवाल ऐसा है जिसके लिए बड़े एहतियातसे काम लेनेकी जरूरत है और यह बात प्रान्तोंपर ही छोड़ देनी चाहिए कि हर प्रान्त उसे अपनी स्थितिको देखते हुए जिस विधिसे हल करना अधिकसे-अधिक उपयुक्त समझे उस विधिसे हल करना तय करे। इस कामके लिए स्थायी कोष बनानेकी बातको भी मेरी बुद्धि स्वीकार नहीं कर सकती। मुझे इस विषयका दक्षिण आफ्रिकाका अमली तजरबा है और कुछ-कुछ यहाँका भी है। मैंने उससे यह देख लिया है कि बहुत बार कुपात्रोंको सहायता मिल जाती है और पात्र वंचित रह जाते हैं। किसी दूरवर्ती सम्भावित कार्यके लिए स्थायी कोष बनाना उन लोगोंके सामने एक प्रलोभन रखना है, जो दानके धनसे निर्वाह