पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/५०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४७६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करना बुरा नहीं समझते। मुझे बेईमानी करनेकी गुंजाइशोंसे बचनेके लिए दक्षिण आफ्रिकामें एक आश्रम स्थापित करना पड़ा था। उसमें जिन्हें सहायताकी आवश्यकता थी और जो उसके पात्र थे, ऐसे लोगोंके रहन-सहन और खानपानका और उनकी देखभालका इन्तजाम था। इस प्रबन्धके द्वारा हजारों रुपयोंका अपव्यय बचाया जा सका था। वहाँ हर सच्चे संकटग्रस्तको आश्रय दिया जाता था, प्रत्येक मनुष्यके प्रति पूर्ण न्याय किया जाता था, लोग आदर्श स्थितियोंमें रखे जाते थे, उनसे उपयोगी काम कराया जाता था और जो कुटुम्ब वहाँ रहते थे उनके बच्चोंको शिक्षा दी जाती थी। वहाँ इतना काम उस एक व्यवस्थासे ही सम्भव हो गया था। मैंने १९२१ की भारी हड़तालके बाद चटगाँवमें भी यही पद्धति सुझाई थी। जबतक राजनैतिक कैदियों या नजरबन्दोंकी व्यवस्थाके लिए मेरे सुझाये उपायों-जैसे शीघ्र-प्रभावकारी उपायोंसे काम न लिया जायेगा तबतक दानके धनके दुरुपयोगका खतरा रहेगा। सच्ची लड़ाई तो, यदि बड़े पैमानेपर होती है, तो आगे आयेगी। हम जो आजादी हासिल करना चाहते हैं हमें उसकी पूरी-पूरी कीमत चुकानी होगी और यदि हम भविष्यमें आनेवाले संकटकालके लिए सोच-विचारकर कोई समुचित योजना नहीं बनायेंगे तो हमारे सम्मुख आजादीकी लड़ाईमें भूखसे व्याकुल होकर असम्मानपूर्ण आत्मसमर्पण करनेकी सम्भावना रहेगी। इसीलिए मैं स्मारककी बातसे पृथक्, इस विषयके गुणावगुणके आधारपर, जिसे राजनैतिक संकट कहा जा सकता है उसमें फँसे लोगोंकी सहायतार्थ कोई स्थायी कोष बनानेके विरुद्ध हूँ।

बेकार कांग्रेसजनोंका प्रश्न इससे अधिक जरूरी और स्थायी प्रकारका है। यद्यपि हम इस विषयमें प्रस्ताव पास कर चुके हैं तथापि अबतक हम अखिल भारतीय कांग्रेस सेवामण्डल या प्रान्तीय सेवामण्डलतक स्थापित करनेमें सफल नहीं हो पाये हैं। इसका कारण संकल्प ही नहीं, बल्कि योग्यताकी कमी है। मैंने खुद इसे दो बार हल करनेकी चेष्टा की थी; परन्तु मैं मानता हूँ कि मैं कोई रास्ता नहीं निकाल सका। मैं न तो यह तय कर सका कि इस सेवाके अन्तर्गत अधिकसे-अधिक कितना पैसा दिया जाये और न इस सेवाका वर्गीकरण ही कर सका। ऐसी अवस्थामें जहाँ-कहीं ऐसी प्रणालीकी स्थापनाका प्रयत्न किया गया वहीं यह आवश्यक मालूम हुआ कि इस प्रश्नको हाथ न लगाया जाये और हर शख्सका मामला उसके गुणावगुणके आधारपर तय, किया जाये। अभी शायद कोई नियमित सेवा मण्डल स्थापित करना तो सम्भव नहीं है, परन्तु मुझे इसमें कोई शक नहीं कि उसकी वेतन दरें और पद्धति दोनों धीरे-धीरे बन रही हैं।

रचनात्मक कार्यकी दो शाखाएँ ऐसी हैं जिनमें कांग्रेसके सबसे अधिक कार्यकर्त्ता लगे हुए हैं। एक तो है खादी और दूसरी, जो खादीसे कुछ कम व्यापक है, शिक्षा है। परन्तु इन प्रवृत्तियोंके सम्बन्धमें भी हर प्रान्तको अपनी-अपनी योजनाकी जिम्मेवारी स्वयं ही लेनी होगी; और चूँकि ये सेवाएँ भी आम तौरपर स्थानीय लोगों द्वारा दिये गये चन्दोंपर ही निर्भर हैं, इसलिए यह सिद्धान्त यहाँ भी बहुत हदतक लागू होता है कि वही सेवाकार्य जीवित रहनेके योग्य है जिसके लिए स्थानिक जनोंकी