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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उतना ही अध्यवसाय और अध्ययन जरूरी है जितना वकालतके लिए। पत्रलेखक इस भ्रममें भी पड़े मालूम होते हैं कि भारतमें खद्दरका सन्देश वस्त्रहीनोंको कपड़ा देनेके उद्देश्यसे प्रचारित किया जा रहा है। इसके विपरीत खद्दरका प्रयोजन भी ठीक वही है, जो धानका है। चरखेसे लाखों लोगोंको अतिरिक्त काम मिलेगा, जिसका अर्थ होगा अतिरिक्त आमदनी और इस आमदनीसे वे अपने उस नाकाफी आहारकी कमी पूरी कर सकेंगे। आज तो उनको पर्याप्त मात्रामें आहार भी सुलभ नहीं है।

भारतमें खेती कोई मृतप्राय धन्धा नहीं है। इसकी कमियाँ दूर करके इसमें सुधार करनेकी ही जरूरत है। लेकिन खेतीमें सुधार तभी सम्भव है जब यहाँ राष्ट्रीय सरकार हो। यहाँके जनसाधारणका एकमात्र धन्धा खेती है, पर इससे उन्हें अपने शरीर-निर्वाहके लिये समुचित रूपसे आवश्यक जीविका नहीं मिल पाती। इसलिये खेतीके क्षेत्रमें व्यक्तिगत रूपसे किये जानेवाले किसी भी प्रयासका जनतापर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा। यदि पत्रलेखक अपने धन्धेसे वस्तुतः ऊब गये हैं और उसे छोड़ना चाहते हैं, तो उन्हें शेखचिल्ली-जैसे मनसूबे नहीं बाँधने चाहिए। उन्हें सूत कातनेमें दक्षता प्राप्त करनी चाहिए और वे देखेंगे कि वे अपने निर्वाहके लिए ही सूत नहीं कात रहे हैं, बल्कि वैसी संस्थाओंके निर्माणमें लगे हैं जो बंगालमें सूत कातने और खद्दर बनानेका प्रचार करनेके लिए चलाई जा रही हैं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ३०-७-१९२५
 

२८३. वक्तव्य : समाचारपत्रोंको

३० जुलाई, १९२५

मौलाना अबुल कलाम आजादने मुझे सूचित किया है कि कुछ ही दिन हुए मैंने यूरोपीय संघमें जो भाषण[१] दिया था उसका विवरण अखबारोंमें छपा है। उसके फलस्वरूप मुसलमानोंमें काफी वादविवाद उठ खड़ा हुआ है और वे कुछ चिढ़ भी गये हैं। इसका कारण यह है कि कुछ मुसलमान सज्जनोंने मेरे भाषणका यह अर्थ निकाला है कि मेरी निगाहमें कोई ऐसा योग्य और ईमानदार मुसलमान नहीं आया जिसे मेयरके पदपर प्रतिष्ठित किया जा सके और मौलाना साहबने भी मुझसे यही बात कही थी। अब मैंने अपने भाषणकी वह रिपोर्ट पढ़ ली है जिससे यह अर्थ निकाला गया है। यद्यपि यह रिपोर्ट मेरे भाषणकी शब्दशः रिपोर्ट नहीं है तथापि उस प्रकाशित विवरणसे जो अर्थ निकाला गया है सो नहीं निकलता।

मैंने जो-कुछ कहा था वह यह था कि यदि किसी मुसलमान सज्जनका नाम पेश किया जाता और यदि उसे मैं स्वयं जानता होता तो उसकी योग्यता और ईमान-

  1. देखिए "भाषण : यूरोपीय संघकी बैठकमें", २४-७-१९२५।