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पत्र : 'स्टेट्समैन' को

निरन्तर अपनेको या देशको सत्याग्रहके योग्य बनानेका उद्योग कर रहा हूँ। मैं आपको अत्यन्त नम्रतापूर्वक सूचित करता हूँ कि यदि मैं अपने कान्तिकारी मित्रोंका पूर्ण सहयोग प्राप्त कर सकूँ——उनकी प्रवृत्तियोंको पूर्णतः बन्द करा सकूँ और अहिंसाका सामान्य वायुमण्डल उत्पन्न कर सकूँ तो मैं आज ही सामूहिक सत्याग्रहकी घोषणा कर और इस तरह सम्मानपूर्ण सहयोगका मार्ग प्रशस्त करूँ। मैं मानता हूँ कि मैं १९२१ में ऐसा नहीं कर पाया था और जब मैंने देखा कि चौरीचौराके लोगोंने मुझे धोखा दिया है तो मैंने सत्याग्रहको उसके आरम्भकी घोषणा के चौबीस घंटेके भीतर ही मुल्तवी कर देने और उसके बाद उसके फलस्वरूप देशमें फैलनेवाले व्यापक निरुत्साहके परिणामोंका जोखिम उठानेमें कोई झिझक नहीं दिखाई थी।

और मैं जो हिन्दू-मुस्लिम एकता, चरखा और खादीकी लगातार इतनी रट लगाता रहता हूँ सो इसलिए कि सत्याग्रहके लिए आवश्यक अहिंसा समाजमें रूढ़ हो चुकी है, मैं इसका इत्मीनान कर लेना चाहता हूँ। मैं कबूल करता हूँ कि मैंने हिन्दुओं और मुसलमानोंमें अति निकट भविष्यमें एकताकी आशा छोड़ दी है। हाँ, अस्पृश्यता धीरे-धीरे परन्तु निश्चय ही मिट रही है और चरखा भी धीरे-धीरे परन्तु निश्चय ही प्रगति कर रहा है। परन्तु इस बीच देशका निर्दयतापूर्ण शोषण तो तेजीसे जारी ही है। इसलिए मैं किसी-न-किसी तरह की ऐसी कारगर व्यक्तिगत सत्याग्रहको योजनापर विचार कर रहा हूँ जिससे इस दरिद्र देशके कष्ट कम न हों तो कमसे-कम उन लोगोंको जिन्होंने अहिंसाको अपना सिद्धान्त मान लिया है, यह समझकर कुछ तसल्ली हो जाये कि उन्होंने अपनी तरफसे देशको उस दासतासे छुड़ानेमें, जो सारी कौमको निःसत्व बना रही है, कोई बात नहीं उठा रखी है।

मैं यह फिर कबूल करता हूँ कि अभी मेरे पास इसकी कोई योजना तैयार नहीं रखी है; क्योंकि यदि रखी होती तो मैं उसे आपसे या देशसे न छिपाता। परन्तु मैं आपके सामने अपने मनकी सारी चिन्तन-विधि रख रहा हूँ। मुझे झूठा दिखावा करके अंग्रेजोंका सद्भाव प्राप्त करने या बनाये रखनेकी कोई इच्छा नहीं है। जिस तरह सरकार भारतके राजनीतिज्ञोंके सामने शर्तें पेश करते समय अपने अस्तित्व और स्थायित्वको सुनिश्चित करनेके लिए किसी किस्मका एहतियात बरतने या तैयारी करनेमें कसर नहीं करती, उसी तरह मैं चाहता हूँ कि मेरा देश भी उस साधनको प्रखर बनानेमें कोई कसर न रखे, जिसका प्रयोग वह उस समय कर सकता है जबकि सरकार उसकी इच्छाओंकी पूर्ति न कर सके।

आप जानते ही होंगे (क्योंकि अब वह पत्र-व्यवहार प्रकाशित हो चुका है) कि देशबन्धुने डॉ॰ बेसेंटके विधेयक सम्बन्धी घोषणापत्रपर दस्तखत नहीं किये हैं। उसका एक कारण यह था कि उसमें उस साधनके प्रयोगकी गुंजाइश नहीं थी, जिसका प्रयोग विधेयकके अस्वीकृत किये जानेकी अवस्थामें किया जा सकता हो। वह साधनं सत्याग्रह है। क्या आप यह पसन्द करेंगे कि जब देशका सारा पौरुष नष्ट हो जाये और वह हिंसात्मक या अहिंसात्मक किसी तरहके प्रतिकारके लिए सर्वथा अयोग्य हो जाये तब कहीं जाकर ब्रिटिश सरकार सुलहकी शर्तें पेश करे या स्वराज्यदल या किसी दूसरे दलके

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