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परिशिष्ट

कर लिया गया है कि आप दूसरे लोगोंको समझौतों और करारोंकी नीतिपर चलकर भी देख लेने दें, क्योंकि राजनीतिज्ञोंको तनिक भी कहीं झुके बिना सत्यके अनुशीलनका कट्टरपंथी मार्ग अपनानेकी बजाय समझौते और करारोंका रास्ता कहीं ज्यादा पसन्द आता है। वे एक लम्बे अर्सेसे किसी एक सर्वसम्मत योजनाके आधारपर लोगोंके व्यक्तिगत स्वार्थीको हल करके उनको एकजुट करनेकी कोशिश करते आ रहे हैं और सोचते हैं कि विधानसभाओंमें लगातार बाधाएँ खड़ी करते रहकर स्वराज्य हासिल कर लिया जायेगा। यों इन कोशिशोंको शुरूसे ही असफलताका मुँह देखना पड़ा है, किन्तु मुझे नहीं लगता कि इससे उनका भ्रम दूर हो सका है। जो भी हो, आपका धर्म तो यही है कि आप अपने मार्गपर चलते रहें, आप और वे ज्यादा दूरतक साथ-साथ नहीं चल सकते। आपके निकट सबसे महत्त्वपूर्ण काम है आपका अपनी सारी शक्तिको मूलभूत प्रश्नोंमें लगाना। आप दुनियाको दिखा दें कि असहयोग सार-रूपमें सहयोग ही है और सैन्य-शक्तिसे कहीं अधिक सबल है। न्याय-प्रिय व्यक्ति सहिष्णुता और सद्भावसे प्रेरित होकर विरोधियोंमें समझदारी और विवेक जगानेकी खातिर स्वयं कष्ट-सहनको स्वीकार करके अन्यायको पराजित करनेके लिए जो सहयोग करते हैं, वही असहयोग है। भारतको इसकी जरूरत है, लेकिन भारतसे कहीं ज्यादा यूरोपको; और सच तो यह है कि सारे संसारको इसकी जरूरत है। यही एक चीज है जो 'लीग ऑफ नेशन्स' को, उसके इरादेको कामयाब बनानेकी शक्ति दे सकती है। यही एक चीज है जो शस्त्रहीन राष्ट्रोंको उनकी गरिमा और प्रतिष्ठा बनाये रखने और अपने महत्त्वको सुरक्षित रखनेकी शक्ति प्रदान कर सकती है और यही एक शक्ति है जो शान्ति और सुरक्षाकी परवाह न करके अपना सिक्का जमानेकी धुन में होड़ लगाते हुए राष्ट्रोंकी आँखोंके आगेका वह अन्धकार दूर कर सकती है जो उनको युद्धोंके गर्तमें ढकेल देता है। नया विश्व इस नूतन सन्देशकी राह ताक रहा है। ईश्वरने आपको जितनी भी शक्ति दी है, उस समूची शक्तिके साथ इस सन्देशका उदघोष कीजिए।

भोजनकी समस्या भी उतनी ही अहम है जितनी कि शान्तिकी समस्या। आपने अपने ध्वजपर चरखा अंकित करके छोटे-बड़े सभी राष्ट्रोंकी आर्थिक स्वाधीनताके प्रतीकको सर्वोच्च स्थान दिया है। शारीरिक सुखों, भौतिक वैभव और असीमित उत्पादनके लक्ष्यके पीछे ऑंखें मूँदकर बेतहाशा भागते-फिरनेसे मानवको सुख नहीं मिलेगा। ये चीजें तो मानवकी लिप्साकी अग्निको और अधिक प्रज्वलित कर देती हैं। हर परिवारको अपनी जरूरतके लायक ही पैदा करना चाहिए और जिन जरूरी वस्तुओंका उत्पादन वह स्वयं नहीं कर सकता उनको उसे अपने पास-पड़ोसके क्षेत्रोंसे हासिल करना चाहिए। व्यापारको वस्तु-विनिमयका रूप दीजिए, उसे एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्रोंके अन्धाधुन्ध शोषणका, ऐसी संगठित प्रतियोगिताका, रूप मत लेने दीजिए, जिसका नये सिरेसे विश्वके आर्थिक सम्बन्धोंके उदारतापूर्ण समायोजनके बिना असफल होकर रह जाना एक निश्चित बात है। आप अपने अमलमें चरखेको एक प्रतीकके रूपमें ही रखिए। उसे गाँवोंके आधुनिकीकरणका प्रतीक बनाइये। हमें गाँवोंमें विद्युत-शक्ति