पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/५१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४८६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पहुँचाकर, कपड़ेकी बुनाई, जलकी व्यवस्था, तेल निकालने और ऐसे हजारों अन्य उद्यमोंमें उसका उपयोग करना चाहिए। हमारे घने बसे गाँवोंमें इनकी बड़ी जरूरत है। विद्युत शक्तिका उपयोग हमें गाँवोंके लिए पर्याप्त भोजन और वस्त्र जुटानेमें करना चाहिए। आप इस बातसे बिलकुल ही बेखबर कैसे हो सकते हैं कि कोई भी देश अब इस नये युगके प्रभावसे सर्वथा अछूता नहीं रह सकता। यह नया युग आश्चर्यजनक करतबों और यन्त्रोंका युग है और अब इसे नित-नये आविष्कार और मानवीय प्रकृति दोनों मिलकर संचालित कर रहे हैं। आप गाँवोंके कार्यकर्त्ताओंको गाँवोंमें ही नये-नये आविष्कारोंसे, नये-नये यन्त्रोंसे लैस कर सकते हैं, मानवीय प्रकृतिको अधिक उदात्त बनानेके लिए आप उनमें एक आध्यात्मिक सेवाभाव संचरित कर सकते हैं और अनेक सदियोंतक प्रतिकूल परिस्थितियोंमें भी भारतको सीधा खड़ा रहने योग्य बनानेवाले आदर्शों और परम्पराओंको जीवन्त बनाये रखनेके लिए कथाओंकी पुरानी पद्धतिको पुनः अपनाकर आप कर्म, प्रेम और श्रमके आचार-नियम उनके मनमें बैठा सकते हैं।

आपने जिन समस्याओंके हलका बीड़ा उठाया है उनमें सबसे प्रधान है——हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच अच्छे सम्बन्ध स्थापित करना। मुझे पूरा यकीन है कि हृदय और बुद्धिमें महान मैत्रीभावको आप अंग्रेजोंतक विस्तृत रखना चाहते हैं। मेरा खयाल है कि आप अपने तई स्वयं सहमत न होते हुए भी समझौतों और राजनीतिक दृष्टिसे की गई सुलहोंकी कामयाबीकी गुंजाइशके बारेमें सोचने लगे हैं और आप इस बातपर सहमत हो गये हैं कि आपके मित्रगण अपने-अपने तरीकोंको इस्तेमाल करके देख लें। वे लोग इस मामलेमें नाकामयाब हो चुके हैं, इसलिए अब आप उनसे कह सकते हैं कि वे आपको अपने ही तरीकेसे काम करने दें। हो सकता है कि जनता आज आपके पीछे न चले, पर अन्तमें सत्यकी ही विजय होगी। आप अपना एक मूर्त उदाहरण पेश करके लोगोंमें सौहार्द और समझदारीका दीप जला सकते हैं और स्वयं एकताकी भावनापर अमल करके एकता पैदा कर सकते हैं। इससे अधिक कुछ करना तो किसी भी मनुष्यके वशमें नहीं है। अवसरवादी हिन्दू और मुसलमान मुँहसे तो एकता की बात करते हैं, किन्तु यह तोता-रटन्त ही है; उनका वास्तवमें इसपर कोई विश्वास नहीं है। ऐसे लोगोंके मनमें कभी एकता की भावना नहीं आयेगी। वे शक्ति और पद हथियाना चाहते हैं। ऐसे लोगोंको आप उनके मनकी अन्ध गुहाओंमें ही रहने दीजिए, जिनमें युगों-युगोंसे अंधेरेका ही राज है। फूट पैदा करनेवाली बातोंकी छानबीन करके उनके कारणोंको दूर किया जाना चाहिए; धर्मके नामपर प्रचलित अन्ध-श्रद्धाओंका निराकरण किया जाना चाहिए। हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच खान-पानकी छुआछूत मिटाइये, मुसलमान यदि यही चाहें तो उनको गायकी कुरबानी देने दीजिए, यदि वे मन्दिरोंको सचमुच अपवित्र करना चाहें तो मन्दिरोंके द्वार खोल दीजिए। मन्दिरोंके द्वार खोलकर मित्रोंके रूपमें उनको आमन्त्रित कीजिए और वे जहाँ भी अपने धार्मिक जुलूस ले जाना चाहें, उन्हें ले जाने दीजिए और पीपलके वृक्षोंको काटने दीजिए। हिन्दुओंको यह सब बर्दाश्त ही नहीं करना चाहिए, बल्कि