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परिशिष्ट

इन जुलूसोंमें स्वयं भी शामिल होना चाहिए। मुसलमानोंको भी चाहिए कि वे हिन्दुओंको उनकी इच्छानुसार शंख बजाने और ध्वजाएँ लेकर चलनेकी आजादी दें। मुसलमानोंको इकबालके ये शब्द सदा याद रखने चाहिए "ये दोनों एक बड़ी लम्बी मंजिलके हमराही हैं और दोनों रातके अंधेरेमें भटक गये हैं।"

इतना कीजिए, बाकी सब अपने-आप हो जायेगा। इस कामकी जरूरत गाँवोंमें, मन्दिरोंमें, मस्जिदोंमें और शहरोंमें——उन सभी जगहोंपर है जहाँ कुछ अधिक सद्भावनापूर्ण लोग मिल सकते हों। इस बातकी मुनादी फिरवा दी जानी चाहिए कि अब आगेसे हम इन बातोंको लेकर आपसमें नहीं लड़ेंगे और हिन्दू अपने मन्दिरों तथा मुसलमान अपनी मस्जिदोंके द्वार एक-दूसरेके लिए खोल देंगे और दोनों एक-दूसरेके त्यौहारोंमें खुलकर हिस्सा लेंगे।

राजनीतिक समस्या महत्त्वपूर्ण तो है, लेकिन इससे कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है जनताकी जरूरतें पूरी करना, उनकी सेवा करना। एक मौसम हल चलानेका होता है, एक बीज बोने और फिर एक फसल काटनेका होता है। बुरे ढंगसे खेती करनेवाला किसान अपने खेतको गलत ढंगसे जोतता-बोता है और फिर जब कटाईके वक्त खेतमें जाता है तो रोता है। कुशल किसान बड़े धीरजके साथ बार-बार जुताई करता है और बड़ी भरी-पूरी फसल काटता है। हम अभी जुताईके मौसममें ही हैं। हमें ज्यादा अच्छी शिक्षा, अधिक भोजन, बेहतर मकानों और अधिक बड़े पैमानेपर जातियों तथा धार्मिक आस्थाओंके हेल-मेलकी जरूरत है। यदि आधुनिक उपकरणों और साधनोंको पूरी तौरपर मनुष्यके वशमें रखकर नियन्त्रित किया जाये तो उनसे खेतीके उत्पादनमें और मनुष्यको नैतिक एवं शारीरिक रूपसे अधिक उन्नत बनानेमें बड़ी सहायता मिल सकती है। इस दिशामें भी कुछ काम कीजिए। विद्युत-शक्तिको झोंपड़ियों और मकानों और खेतोंमें मानवकी सेवामें लगाइए और हर मनुष्यको परिपक्व होनेमें मदद दीजिए। प्रेम, आत्म-निर्णय और स्वतन्त्रताके अपने सन्देशका खूब प्रचार कीजिए। मानव ही अपने भाग्यका विधायक है और जब वह इस सत्यकी अनुभूति कर लेगा तब सभी तात्कालिक समस्याएँ सरलतासे अपने-आप हल होती चली जायेंगी। मैंने यह सुझाव सिर्फ इसलिए रखे हैं कि आपको यह समझनेमें आसानी पड़े कि जनताको जरूरत किस चीजकी है, इसलिए नहीं कि मैं इन चीजोंके बारेमें कोई बहुत अधिक ज्ञान रखता हूँ। राजनीतिकी खूबी यह है कि वह अकसर सत्यपर एक रहस्यका आवरण चढ़ा देती है और इस प्रकार स्थायी तथा प्राथमिक महत्त्वकी चीजोंकी अपेक्षा अस्थायी तथा महत्त्वहीन चीजोंको अधिक उभारकर पेश कर देती है।

यंग इंडिया, २५-६-१९२५