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परिशिष्ट २
बी॰ सी॰ चटर्जीका पत्र

३-७-१९२५

सम्पादक,
यंग इंडिया,
महोदय,

आपने हालमें घोषणा की है कि भविष्यमें देशबन्धुके फरीदपुरके भाषणको आधार मानकर ही कार्य किया जायेगा। इस घोषणासे लोगोंके हृदयोंमें आशा और प्रेरणाका संचार हुआ है। कारण यह कि घोषणामें यह बात स्पष्ट दिखाई पड़ती है कि आपने देशके सभी कार्यकर्त्ताओंको फिरसे एक मंचपर खड़े होनेकी दावत दी है। फरीदपुर सम्मेलनके अध्यक्षीय भाषणमें यह महान् उद्देश्य बड़े ही स्पष्ट रूपमें सामने रखा गया था। उस भाषणकी आपके द्वारा ताईद किये जानेका अर्थ यही लगाया जा सकता है कि आप उस उद्देश्यको स्वीकार करते हैं। मैं अपनी बात थोड़ी स्पष्ट कर दूँ। देशबन्धुने अपना यह सुविचारित मत सभीको जता दिया था कि यदि सरकार मुडीमैन कमेटीके अल्पमत द्वारा की गई सिफारिशोंपर अमल करने लगे और बंगाल आर्डिनेंसके अधीन नजरबन्द किये गये लोगोंको रिहा कर दे तो अच्छा यही रहेगा कि देश 'सुधारों' को स्वीकार कर ले। उन्होंने अपनी इस एक घोषणासे ही स्वराज्य दल और अन्य राजनीतिक दलोंके बीच मतभेदोंकी गुंजाइश खतम कर दी है। समूचा 'लिबरल' दल (उदारपंथी दल), और सच कहें तो सुधारोंमें विश्वास करनेवाले वे सभी लोग जिनमें आत्म-सम्मान और देशाभिमानकी भावना है, तबतक माँटेग्यु चेम्सफोर्ड योजनासे अपनेको अलग रखनेके लिए वचनबद्ध हैं जबतक कि सरकार अल्पमत द्वारा तैयार की गई रिपोर्टको वैधानिक रूप देकर उसे लागू नहीं कर देती। क्योंकि उस रिपोर्टके पीछे उन लोगोंका व्यावहारिक अनुभव है जिन्होंने 'सुधारों' को पूरी ईमानदारीके साथ क्रियान्वित करनेमें अपनी लोकप्रियताको बरकरार रखनेकी भी कोई परवाह नहीं की। और दूसरी चीज यह है कि भारतीय कहलाने योग्य कोई भी व्यक्ति 'बंगाल आर्डिनेंस' जैसे कानूनका कष्ट भोगते हुए ग्रेट ब्रिटेनके साथ सहयोग-करनेकी बात मनमें नहीं ला सकता। मतभेदोंके बावजूद आपके प्रति हार्दिक श्रद्धा व्यक्त करनेवाले समस्त राष्ट्रवादी भारतीयोंकी ओरसे, मैं अपने अन्तरकी पुकार और उत्कट भावातिरेकके साथ आपसे आग्रह करता हूँ कि आप अपनी स्वाभाविक स्पष्टवादिताके साथ सारे देशको स्पष्ट बतला दें कि सरकार यदि वास्तवमें देशबन्धुके दोनों सुझावोंको क्रियान्वित कर दे तो आप 'सुधारों' का समर्थन करेंगे या नहीं।

आपका स्वीकृति-सूचक उत्तर आपके अपने व्यक्तित्व और भारत देशके भाग्यके इतिहासमें एक सर्वथा नवीन और मुझे कहनेकी अनुमति दीजिए कि, एक अधिक