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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रहा तो वे उनको कमसे-कम सार्वजनिक उपयोगकी आम सड़कोंके इस्तेमालपर केवल अपने ही अधिकारके दावेसे विरत कर ही लेंगे।

सादर,

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ ११०९९) से।

 

परिशिष्ट ४

के॰ केलप्पनका पत्र

सत्याग्रह आश्रम
वाइकोम
१८ जून, १९२५

प्रियवर महात्माजी,

फर्स्ट क्लास (प्रथम श्रेणी) के मजिस्ट्रेट और पुलिसके असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट (सहअधीक्षक) देवस्वोम अधिकारियोंके साथ यहाँ पहुँच गये हैं। उनका कहना है कि यदि मैं सत्याग्रह बन्द कर दूँ तो वे विवादग्रस्त मार्गोंमें से आधे मार्गोको (संलग्न मानचित्र देखिए)[१] सार्वजनिक घोषित करनेके लिए तैयार हैं। हम इस हलको स्वीकार नहीं कर सकते, क्योंकि यह वास्तवमें कोई हल ही नहीं है। वाइकोमके मन्दिरोंके इन मार्गोंसे तो हमें कभी कोई निस्बत ही नहीं रही। हम तो एक सिद्धान्तके लिए लड़ रहे हैं। हम तो शुरूसे यही कहते आ रहे हैं कि किसी भी व्यक्तिको अन्त्यज होनेके आधारपर सार्वजनिक मार्गोंके उपयोगसे वंचित नहीं किया जाना चाहिए। अब आधे मार्गोको उनके लिए बन्द रखकर सरकार सचमुच इसी मतकी पुष्टि करेगी कि एक जाति-विशेषके लोगोंके लिए कुछ मार्ग बन्द किये जाने चाहिए। सत्याग्रह बन्द करनेका अर्थ यही होगा कि हम उसी पुराने सिद्धान्तको स्वीकार कर लेंगे जिसका प्रतिपादन अब त्रावणकोर सरकार एक नये सिरेसे कर रही है। हम कतई ऐसा नहीं कर सकते। इसीलिए मैंने कह दिया है कि हम संघर्ष बन्द नहीं कर सकते।

यह इलाज तो रोगसे भी बदतर है। हम अभीतक लोगोंको यह आशा तो बँधाये रख सकते थे कि अन्तमें विजय हमारी ही होगी। लेकिन सत्याग्रह बन्द करनेके बाद तो हम लोगोंके सामने सिर सीधा करके भी नहीं चल सकेंगे। पूर्वी मार्ग क्यों नहीं खोला गया? यह तो नहीं है कि इस व्यवस्थासे किसी भी मार्गपर हमारे प्रवेशका विरोध करनेवाले सवर्ण लोग सहमत हो गये हों। यदि ये तीनों मार्ग उनके विरोधके बावजूद खोले जाने हैं तो चौथा मार्ग खोल देनेपर भी उनको आपत्ति नहीं

  1. यह नहीं दिया जा रहा है।