पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/५२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४९३
परिशिष्ट

हो सकती। तब फिर सरकारने ऐसा मूढ़ हल क्यों अपनाया है जिससे किसी भी पक्षको सन्तोष नहीं होगा। मैं तो इसका कोई भी कारण नहीं समझ पाया, सिवाय इसके कि सरकार भी अन्त्यज प्रथाको बरकरार रखना चाहती है। यदि यह डर हो कि मौजूदा पुजारी पूजा नहीं करायेंगे, तो यह डर भी ठीक नहीं है; क्योंकि सरकारने मौजूदा पुजारियोंकी हड़तालकी सम्भावना देखकर उनसे भी कहीं अच्छे लोग पूजा करानेके लिए ठीक कर लिए हैं। सरकार इससे कोई अधिक मूर्खतापूर्ण हल नहीं सोच सकती थी।

ऐसी परिस्थितियोंमें संघर्षको त्याग देना जनताकी नजरोंमें बहुत ही गिर जाना होगा। कृपया बताइये कि हम क्या करें। तार द्वारा आपके उत्तरकी प्रतीक्षा है।

आपका आज्ञाकारी
के॰ केलप्पन

[पुनश्च :]

मैंने आज आपकी हिदायतें पानेके लिए एक तार भी भेजा है।

 

परिशिष्ट ५
मोतीलाल नेहरूका पत्र

कलकत्ता
२१ जुलाई, १९२५

प्रिय महात्माजी,

अपने महान नेता, देशबन्धु चित्तरंजन दासकी अकाल मृत्युसे स्वराज्यवादी दलको अपूरणीय क्षति पहुँची है। आपने दलको ऐसे गाढ़ समयमें इतनी उदारतापूर्वक जो समर्थन और सहारा दिया है, उसके लिए हमारा दल आपके प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करता है। १९ जुलाईके अपने पत्रमें आपने जो एक अत्यन्त ही सदाशयतापूर्ण प्रस्ताव किया है, उससे तो आपके आभारका यह ऋण कई गुना बढ़ गया है। मुझे लगता है कि आपके इस ॠणसे मुक्त होनेका बस एक ही उपाय रह गया है——यह कि आपका प्रस्ताव पूरी विनम्रताके साथ हम स्वीकार कर लें और देशबन्धुके फरीदपुरवाले अन्तिम भाषणमें निहित भावनाके साथ, आपकी सहायतासे लॉर्ड बर्कनडके भाषणसे उत्पन्न हुई स्थितिका सामना करनेकी कोशिश करें।

लगता है कि लॉर्ड बर्कनहेडने देशबन्धु द्वारा रखे गये सम्मानप्रद सहयोगके प्रस्तावको ठुकरा दिया है और यह स्पष्ट कर दिया है कि हमें स्वतन्त्रताके अपने इस संघर्षमें अभी भी कई अनावश्यक बाधाओं और गलत-सलत जानकारी रखनेवाले विरोधियोंसे लोहा लेना पड़ेगा। इसलिए इस अवस्थामें हमारा कर्त्तव्य यह है कि