पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५
टिप्पणियाँ

रुई अच्छी धुनी हुई होनी चाहिए, यह तो आवश्यक है ही, किन्तु पूनियाँ बनानेका काम भी सावधानीसे किया जाना चाहिए। यदि पूनियाँ बनानेमें रेशोंको सिर्फ घुमा- घुमा कर गोला बना दिया जाये तो अच्छी धुनी हुई रुई भी बेकार हो जाती है।

यदि चिकने पटरेपर रूई एक-सी बिठाकर उसपर सलाई रखकर पाँच या छ: बार हाथसे घुमायें तो रेशे अच्छी तरह लम्बे होकर लिपट जाते हैं और बढ़िया पूनियाँ बनती हैं। ऐसी बनी हुई पूनियोंसे सूत कातनेमें कितना आनन्द आता है, यह तो सूत कातनेवाले ही जानते हैं। यदि हम हथेलीको उसपर दो-एक बार और फेर दें तो और भी अच्छी पूनी बन जाती है। इसके विपरीत यदि एक-दो बार हाथसे यों ही घुमाकर पूनियाँ बना ली जायें तो उससे काते हुए सूतमें सफाई नहीं आती और एकसार सूत आसानीसे नहीं कत सकता। ऐसी पूनियोंमें रेशे उलझकर लिपट जाते हैं जिससे एकसार सूत निकलने में कठिनाई होती है। नेलौर ताल्लुकेके आसपासकी सूत कातनेवाली बहनें यह बात जरूर जानती होगी और इसीलिए वे पूनियाँ बनानेका काम धुनिएको नहीं सौंपतीं। यदि रुई ठीक धुनी हुई न हो तो यह दोष तुरन्त दिखाई दे जाता है और दूर किया जा सकता है। किन्तु यदि पूनियाँ लापरवाहीसे बनाई गई हों तो उन्हें बादमें सुधारना असम्भव होता है।

मुझे आशा है कि सूत कातनेके प्रेमी इन बातोंपर ध्यान रखेंगे।

कंचनलाल मोतीलाल बर्फीवाला

उक्त नामका युवक सूरतमें रहता है। उसकी आयु लगभग २१ वर्षकी है। उसके माता-पिताको १९८०की आषाढ़ सुदी ३से उसका कोई पता नहीं है। वह खादी पहनता था और उसकी रुचि सार्वजनिक कार्यमें थी। वह चश्मा लगाता है। नवजीवन'का पाठक था। वह क्यों और कहाँ चला गया, यह उसके सम्बन्धी नहीं जानते। यदि 'नवजीवन' का यह अंक उसकी नजरमें पड़ जाये तो मेरी उससे प्रार्थना है कि वह तुरन्त अपने संरक्षकोंको अपना समाचार देकर उन्हें चिन्तामुक्त करे। ऐसा लगता है कि आजकल कुछ युवक किसीको बताये बिना अदृश्य हो जाने में कोई बड़ाई या विशेषता मानते हैं। किन्तु वे यह अनुमान नहीं कर सकते कि इससे उनके सम्बन्धियोंको कितनी व्यथा होती है। यदि किसी पाठकको कंचनलालका पता लगे तो मैं उससे प्रार्थना करता हूँ कि वह उसको खबर उसके माता-पिताको राणी तालाब, सूरतके पतेसे दे दे।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, ३-५-१९२५

१. तदनुसार ५-७-१९२४।