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१२. पत्र : बृजकृष्ण चाँदीवालाको
फरीदपुर
 
बैशाख सुदी १०, रविवार
 
[३ मई, १९२५]
 

भाई ब्रजकृष्ण,

तुमारा खत मीला है। मेरा अभिप्राय है कि रु० ५,००० से कारखाना नहि चलेगा। और कितनी भी मुश्किल कर चलाया जावे तो भी उसमें से तात्कालिक लाभ उठानेकी आशा व्यर्थ समजता हुं। जो कोई मनुष्य धन देवे वह फायदेकी लालचसे न देवे। जो मनुष्य खद्दरके सब मद न जानता हो, सूतकी क्रियाओंको नहि जानता है उससे सफलता मीलना असंभावित समजता हुं। इन सब बातोंको समझकर जो कुछ कार्य करना है कीया जावे। मेरा अभिप्राय है कि इस बारे में भाई विट्ठल- दास जेराजानी जो मुबईको दूकान चलाते हैं उनकी राय ली जाय।

मैं मो० महमद अलीको एक मुसलमानको देनेका लीखता हुं। खद्दर सस्ती करनेका रास्ता आजकल तो कापुसको भिक्षा मागना माना जाता है। गूजरातमें यही प्रयोग चल रहा है। छ हफता तक तो मैं बंगालमें हुं। साथमें महादेव और कृष्णदास है।

बापूके आशीर्वाद
 

[पुनश्च :] बंगालमें मेरा पता

१४८, रसा रोड, कलकत्ता

मूल पत्र (जी० एन० २३५६) की फोटो-नकलसे।


१३. भाषण : फरीदपुरमें

३ मई,१९२५
 

महात्मा गांधीने कहा कि नगरपालिकाके कार्यकलापमें मेरी बड़ी रुचि है। जब भी मेरा ऐसे किसी व्यक्तिसे सम्पर्क हुआ जो नगरपालिकाको सेवामें हो, मैंने उस सम्पर्कको अपना एक विशेषाधिकार ही माना। नगरपालिका वास्तवमें उस विस्तृत

१. टाउन हालके सामने नगर-निगमको वैठकमें गांधीजी और चित्तरंजन दासको अभिनन्दन-पत्र दिये गये थे। चितरंजन दासके अनुरोधपर गांधीजीने इनका उत्तर दिया था।