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भाषण : बंगाल प्रान्तीय परिषद्में

अब यहाँतक कि नामशूद्र कहने में भी प्रसन्न होता है। (हँसी)। और इस प्रकार मैंने देखा कि भाषा मेरी नहीं है, किन्तु मालूम पड़ता है कि विचार मेरे चुराये गये हैं, इसलिए मैंने तुरन्त अपने मनमें कहा, यदि वे मुझसे कहेंगे कि मैऺ इसपर अपनी स्वीकृति दूं तो मुझे ऐसा करने में कोई संकोच नहीं होगा और शायद इसके लिए मुझे उसका एक भी शब्द या मुहावरा बदलनेकी जरूरत नहीं पड़ेगी। शायद आपमें- से कुछ लोग ऐसा सोचें कि यह और कुछ भी क्यों न हो, भाषणकी प्रशंसा नहीं है। बल्कि इसके विपरीत यह इस बातकी निश्चित गारंटी है कि वह भाषण पोखरके जलके समान नीरस होगा। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि यह वैसा नीरस नहीं है। लेकिन किसलिए मैं आपको ऐसा आश्वासन दूँ ? आपने उसे सुना है, आपने उसे पढ़ा है। जो चीज पढ़ने में नीरस न लगे, आप भरोसा कर सकते हैं कि उसमें दम होता है।

मैं मुहावरोंपर ध्यान नहीं देना चाहता; मैं भाषाके बारेमें नहीं सोचना चाहता। मैं केवल उसमें निहित विचारोंपर और उसमें हमारे लिए जो सन्देश है, उसपर ध्यान देना चाहता हूँ। यदि हम अपने प्रति सच्चे हैं, यदि हम अपने राष्ट्रके प्रति सच्चे हैं, यदि हम उस नीतिके प्रति सच्चे हैं जो हमने पहली बार कलकत्तमें १९२० में बहुत सोच-विचारके बाद घोषित की थी, तो हमें उस भाषणमें नुक्ताचीनी करने लायक कुछ भी नहीं मिलेगा। वह भाषण उस नीतिका पुनर्निरूपण, एक जोरदार और सुस्पष्ट पुनर्निरूपण है, जिसे कांग्रेसके, इतिहासमें पहली बार १९२० में निर्धारित किया गया था। जब मैं यह कहता हूँ कि यह उस समय कांग्रेसके इतिहासमें पहली बार निर्धारित किया गया था, तब इसका मतलब यह नहीं है कि कांग्रेस कभी हिंसाकी नीतिपर भी विश्वास करती थी; और न यह मतलब है कि कांग्रेसका कभी ऐसा मत भी रहा है कि हम वैध और उचित तरीकोंके अलावा दूसरे तरीके भी अपनायें। मतलब सिर्फ इतना है कि कांग्रेसने इसकी पहले कभी घोषणा नहीं की थी। १९२० में हमने जान-बूझकर दुनियासे यह कहनेका निश्चय किया कि हमारा मंशा स्वराज्य प्राप्त करनेका है और उस लक्ष्यको प्राप्त करने के लिए हम ऐसे साधनोंका उपयोग करना चाहते हैं जो सर्वथा शान्तिपूर्ण और वैध हैं। और अब चूंकि मैंने इन दो शब्दों अथवा दो फिकरोंका अनुवाद “अहिंसा और सत्यमूलक" साधन किया है, इसलिए आप बतायें कि क्या यह अनुवाद अथवा यह व्याख्या आपको ठीक लगती है ? क्या आप इसको मानते हैं ? इन पाँच वर्षोंके दौरान देशबन्धु दास उन व्यक्तियोंमें से रहे हैं जिन्होंने इन दो शब्दोंके अनुसार राष्ट्रीय नीतिको ढालने में योग दिया है। आपको उनसे इसके अतिरिक्त और इससे अधिक किसी और कामकी आशा रखनेका कोई अधिकार नहीं है। मैं इससे अधिक इसलिए कहता हूँ कि हममें से कुछ भोजनमें नमक-मिर्च पसन्द करते हैं, चटखारापन चाहते हैं। इस कार्यक्रममें से फिलहाल चटखारेपन, उत्तेजना पैदा करनेवाले प्रचारादिको निकाल दिया गया है। हमने इस बातपर विचार किया है, प्रत्येक नेताने इसपर विचार किया है। अतः हमारे लिए नमक और मिर्च या आग और बारूदके जरिये स्वतन्त्रता प्राप्त करना सम्भव