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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं है। हम अपना राष्ट्रीय पुनरुत्थान — कह सकते हैं कि राष्ट्रीय मुक्ति — केवल अहिंसात्मक तथा सत्यमूलक साधनोंसे प्राप्त कर सकते हैं। यह जरूरी नहीं है कि इसे हम अपना धर्म बना लें। यह हमारी नीति भी रहे, तो काफी है; यदि हम इसे किसी अन्य या उच्चतर उद्देश्यसे न सही, केवल कार्य-साधकताके उद्देश्यसे ही स्वीकार करते हैं तो भी काफी है।

हमें भारतमें ऐसी समस्याओंको हल करना है जो कि विश्वके किसी अन्य राष्ट्रके सामने नहीं रहीं। यदि हम हिन्दू हैं तो हमें अपने मुसलमान देशवासियों, ईसाई देशवासियों, पारसी देशवासियों, सिखों और हिन्दुओंके बहुत-से एसे सम्प्रदायों और उप-सम्प्रदायोंकी पटरी आपसमें बैठानी है जो हिन्दू धर्मसे अपना अलग अस्तित्व रखते हैं। ऐसे विभिन्नतामूलक तत्त्वोंके बीच एक सोद्देश्य एकता, कर्मको एकता स्थापित करनेके लिए ऐसे ही साधन उपयुक्त रहेंगे जिनपर किसीको कोई आपत्ति न हो। ऐसे साधन अहिंसा और सत्याचरण ही हैं। हम अपने मुसलमान देशवासियोंसे या हिन्दू देशवासियोंके साथ अन्य किसी भी तरीकेसे पेश नहीं आ सकते। और इसके अतिरिक्त हममें प्रान्तीयता भी है। बंगाल सोचता है कि उसे सारे भारतपर हुकूमत करनी चाहिए और सारे भारतको इस छोटे-से प्रान्त बंगालमें समा देना चाहिए (हँसी), और गुजरात भी शायद ऐसा ही सोचता है। गुजरात — जो बंगालके मुकाबले केवल समुद्रमें एक बूंदके समान, है — सोचता है कि हमें सारे भारतपर हुकूमत करनी होगी और सारे भारतको गुजरातमें लीन कर देना होगा। इसके बाद आप बहादुर मराठोंको लें और उनकी हालकी परम्पराओंपर गौर करें। उन्हें भी क्यों नहीं सोचना चाहिए कि भारतके भाग्य तथा नीतिका निर्माण वे ही करें? मुसल- मान अपनी अभी हालकी ही परम्पराओंके कारण सोचता है कि उसे मुस्लिम साम्राज्य- की स्थापना या पुनः स्थापना करनी चाहिए। इन विरोधी तत्त्वों तथा प्रान्तीयतासे बचनेका उपाय अहिंसक तथा सत्यमूलक साधनोंके अतिरिक्त और कोई नहीं है; कारण यह है कि अगर हम कोई दूसरा रास्ता अपनाते हैं तो समझ लीजिए कि हम ऐसी सुरंगपर बैठे हैं जिसमें किसी भी समय विस्फोट हो सकता है। यदि हमारी नीति जरा भी विकृत हुई तो हम शायद नष्ट ही हो जायेंगे। इसीलिए मैंने बार-बार ऐसी नीति अपनानेपर जोर दिया है जो धार्मिक नीति नहीं है, बल्कि अहिंसा और सचाईकी नीति है। अपने लक्ष्यको पूरा करनेके बाद आप अपने देशके साथ जो भी चाहें, कर सकते हैं।

अपने देशके सम्मानकी स्थापनाके लिए आप किसी भी ऐसे साधनका उपयोग कर सकते हैं जिसे आप वैध और उचित समझते हों। किन्तु मैं अपने बारेमें तो कोई लाग-लपेट नहीं रखता, बिलकुल स्पष्ट कहता हूँ कि मेरे लिए यही पहला और अन्तिम अर्थात् एकमात्र साधन है। यही मेरा धर्म है। अहिंसा और सत्य-निष्ठा मेरी साँस है। मैं चाहता हूँ कि मैं अहिंसा और सत्यनिष्ठाके लिए यहाँ उपस्थित प्रत्येक नवयुवकमें वही उत्साह और वही भक्ति भर दूं, जो मुझमें है।

मैं बहुत-से बंगाली नवयुवकोंको जानता हूँ। मैं जानता हूँ कि उनमें अद्वितीय साहस है। वे अपने देशकी खातिर आज जिस प्रकार जी रहे हैं उसी प्रकार वे