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भाषण : बंगाल प्रान्तीय परिषदें

उसकी स्वतन्त्रताकी खातिर मरने के लिए भी लालायित है। यदि यह मेरी धृष्टता न समझी जाये तो मेरा दावा है कि जैसे आज मैं देशके लिए जी रहा हूँ उसी प्रकार मुझमें देशके लिए मरने की भी क्षमता है। किन्तु जैसा मैं कह चुका हूँ कि यह जीवन मरणान्तक यन्त्रणाका जीवन है। फाँसीपर चढ़कर मरने में मुझे जरा भी भय नहीं लगता। मेरा विश्वास है कि यदि मैं निर्दोष हूँ तो मैं ओठोपर मुस्कराहट लिए फाँसीपर चढ़कर मर सकता हूँ। यदि मेरे हाथ और मेरा हृदय हिमके समान निष्कलंक और निर्दोष हैं तो मृत्यु मेरे लिए किसी प्रकार भी भयप्रद नहीं। बंगालके प्रत्येक नवयुवकके लिए मृत्यु ऐसी ही भयविहीन रहे। देशबन्धुने आपके लिए यही नीति पुननिरूपित और पुनः प्रतिष्ठित कर दी है। क्या उन्होंने गयाके अपने सुन्दर भाषणमें यही बात नहीं कही? मैंने वह भाषण अभीतक नहीं पढ़ा, किन्तु मुझे उसकी खबर यरवदा जेलमें मिल गई थी। मैंने वह खबर चुपके चुपके नहीं मँगाई थी। मैं जेलकी सभी हिदायतोंका पालन करता था, किन्तु कभी-कभी जेलर और आनेवाले लोग मुझे बता देते थे कि जेलकी दीवारोंके बाहर क्या हो रहा है। इसी तरह मुझे पता चल गया था कि देशबन्धुने जोरदार शब्दोंमें अहिंसा और सचाईकी नीतिका पुनर्निरूपण और पुनः प्रतिष्ठापन किया है। वे आपके लिए, मेरे लिए, अपने लिए और देशके लिए इसी प्रकार सोचते हैं। आप.जानते ही हैं कि उनकी कितनी कटु आलोचना की गई है। उनके कटु आलोचकोंमें यूरोपीय ही नहीं, बल्कि हमारे अपने देशके लोग भी हैं। आलोचक उनके अपने शिविरमें भी हैं। तब वे क्या करें? क्या उन्हें तटस्थ रहना चाहिए? बेशक वे तटस्थ रह सकते थे, यदि उनके हृदयमें अपने देशका हित न होता, यदि वे अपने देशको मुक्तिके स्वप्न न देखते और यदि वे अत्यन्त मधुर शैलीमें यह कहनेके लिए तैयार न होते कि गांधीजी, मैं आपके लिए दीर्घायु होनेकी कामना नहीं कर सकता क्योंकि आपकी किस्मतमें लिखा हुआ है कि जिस क्षण हमें स्वराज्य मिलेगा उसी क्षण आप मर जायेंगे। आप स्वराज्यके लिए, केवल स्वराज्यके लिए जी रहे हैं; और चूंकि मैं भारतके लिए तत्काल स्वराज्य चाहता हूँ, इसलिए मैं ईश्वरसे यह प्रार्थना नहीं कर सकता कि महात्मा गांधी चिर- जीवी हों। उससे मेरे स्वराज्य आने में विलम्ब होगा। मैं उनके इस विचारको बहु- मूल्य समझता हूँ और उस विचारमें, यद्यपि वह विनोदी भावसे प्रकट किया गया है, उन्होंने मुझे ऐसा सम्मान दिया है, जिससे बड़ा सम्मान मुझे वे या आप दे ही नहीं सकते, क्योंकि यही बिलकुल सही और सच्चा सम्मान है।

मैं स्वराज्यके लिए अत्यधिक अधीर हूँ; उतना ही अधीर जितना कि आपमें से कोई हो सकता है। किन्तु मैं जानता हूँ कि हमारे कर्तव्य क्या है, मैं जानता हूँ कि हमें क्या करना है। यदि मादक उपायोंकी एकाध खुराकसे स्वराज्य पाना सम्भव होता तो मैं आज ही शक्तिशाली ब्रिटिश सम्राट्के विरुद्ध खुल्लमखुल्ला विद्रोह कर देता और कह देता कि आप यहाँसे चले जायें, मैं आज ही स्वराज्य चाहता हूँ। किन्तु वैसा सम्भव नहीं है। मैं खुल्लमखुल्ला ऐसा विद्रोह कर सकनेकी अपनी अक्षमता स्वीकार करता हूँ। मैं अपने देशकी आजकी अक्षमताको स्वीकार करता हूँ। हाँ,