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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं चाहूँ तो कुछ अंग्रेजोंके सिर जरूर काट सकता हूँ; ऐसा तो कोई भी व्यक्ति कर सकता है। उसके लिए मजबूत बाजुओंकी जरूरत नहीं है। इसके लिए मजबूत हृदयकी जरूरत है। आपमें से कोई भी एक छोटा-सा तमंचा लेकर उन्हें निशाना बना सकता है; मैं भी वैसा ही कर सकता हूँ। किन्तु लॉर्ड रीडिम, लॉर्ड लिटन या किसी अन्य अंग्रेजके सिर काटनेसे लाभ क्या होगा? मैं उस सिरको घोड़ेपर घुमा कर यह तो नहीं कह सकता कि अब मेरा देश मुक्त हो गया। देशको मुक्ति अपेक्षाकृत कठिन साधनोंसे प्राप्त होगी। हमें अपने भीतर न केवल मरने की क्षमताका विकास करना होगा, न केवल मारनेको क्षमताका विकास करना होगा, बल्कि जैसा डाक्टर बेसेंटने एक बार कहा था कि जिन लोगोंको हम अपने निकटतम और अत्यन्त प्रिय समझते हैं, उनके विद्वेष, निन्दा, उपेक्षा और बहिष्कारके बीच रहने के लिए भी एक तरहके साहसकी आवश्यकता होती है; [हमें उस तरहके साहसका अपने भीतर विकास करना होगा।] उन्होंने यह ठीक ही कहा था। मैं अपने जीवन- भर हर अवसरपर यही कहता आया हूँ कि इस प्रकारके तूफानों और संघर्षोंके बीच रहनके लिए भी एक तरहका साहस दरकार है।

तब फिर देशकी स्वाधीनता प्राप्त करनेका उपाय क्या है ? निश्चय ही मार- काट नहीं; वर्तमान परिस्थितिमें निश्चय ही अपनी कुर्बानी देकर भी नहीं, बल्कि निरन्तर जुटे रहकर। इसीलिए मैंने बड़ी विनम्रताके साथ आपके सामने तीन चीजें रखनेका साहस किया है। वे हैं : हिन्दू-मुस्लिम एकता, अस्पृश्यता-निवारण और चरखा। परन्तु हिन्दू-मुस्लिम एकताके काममें कोई भी युवक पूरे २४ घंटे नहीं खपा सकता। यह तो हमारा सिद्धान्त है। जिस प्रकार एक मुसलमान कल्मा पढ़ता है और बात खत्म हो जाती है, फिर शेष सारा समय उसके लिए कल्मेके आदेशपर अमल करना ही रह जाता है। जिस प्रकार मैंने गायत्री पाठ किया और पाठ या जपकी बात वहीं खत्म हो गई; फिर उसे दिनमें ५ करोड़ बार पढ़ने की आवश्यकता नहीं, केवल उसके आदेशपर चलना रह जाता है। इसलिए हिन्दू-मुस्लिम एकता और अस्पृश्यता-निवारण एक सिद्धान्त ही है। किन्तु हममें से प्रत्येकको कोई ऐसा काम भी कर सकना चाहिए, जो अधिक मूर्त, ठोस और व्यावहारिक हो। हममें से प्रत्येक चरखा चलाने में अपने हाथोंका उपयोग कर सकता है। आप जो सूत कातते हैं उसके प्रत्येक गजके साथ आप भारतका एक गज भाग्य भी कातते हैं। मैं क्रान्तिके जितने रूप जानता हूँ उनमें इसीको भारतके लिए सर्वोत्तम समझता हूँ। मैं जानता हूँ, आपमें से कुछ लोग इसपर हँसते हैं — यह हँसी अविश्वासकी है। आपमें से कुछ लोग सोचेंगे कि यह मूर्ख आदमी है; समय-असमय चरखेकी रट लगाये रहता है। किन्तु मैं वचन देता हूँ; भविष्यवाणी करता हूँ कि एक दिन ऐसा आयेगा, और वह दिन बहुत दूर नहीं है, जब कोई भी मुझे मूर्ख नहीं कहेगा। इसके विपरीत, मुझे यह सर्वोत्कृष्ट प्रमाणपत्र दिया जायेगा कि गांधीने चरखेके चलनको पुनरुज्जीवित किया है। गांधीने जब हमसे कातने के लिए कहा तो उसने हमें देहातोंका सरल सन्देश दिया; जब उसने चरखेका सन्देश दिया तब उसके ध्यानमें अपने देशके करोड़ों पद-