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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पुरसे रवाना होनेसे पहले दूसरे दिन खादीकी भिन्न-भिन्न क्रियाएँ करनेवालोंको इनाम बाँटा गया। पदक तथा पुरस्कार प्राप्त करनेवालोंमें स्त्रियों और पुरुषोंकी संख्या सम्भवतः बराबर थी। पदक पानेवालोंमें तीन मुसलमान थे। उत्तम पींजनेवालों, पूनियाँ बनानेवालों, कातनेवालों और बुननेवालोंको श्रेणीके अनुसार पदक और पुरस्कार दिये गये थे। परिषद् में[१] देशबन्धुका शरीर बहुत ही दुर्बल दिखाई दिया। उनकी आवाज मंद हो गई है। कमजोरी बहुत है। सच कहें तो अभी उनका स्वास्थ्य ऐसे कामोंमें भाग लेनेके योग्य नहीं हो पाया है। अभी तो डाक्टरोंने उन्हें सलाह दी है कि वे शक्ति प्राप्त करनेके लिए यूरोप या दार्जिलिंग जायें। परन्तु वे वहाँ मजबूरीमें ही जाना चाहते हैं।

परिषद् के लिए खास तौरपर खादीका मण्डप बनाया गया था। उसमें सादगी बहुत थी। बैठनेका इन्तजाम फर्शपर ही रखा गया था। कुर्सी एकजायें हीं थी। मण्डप बनाने का काम तम्बू बनानेवालोंके जिम्मे रखा गया था। वे कहते हैं कि उन्होंने वह शुद्ध खादीका बनाया है। पर हम सबको इसमें बहुत शक है कि वह सचमुच खादीका ही है। मैं जाँच कर रहा हूँ। पर मुख्य बात यह है कि व्यवस्थापकोंका मंशा शुद्ध खादीका ही मण्डप बनवानेका था और उन्होंने मान लिया था कि वह खादीका ही है।

देशबन्धुका भाषण संक्षिप्त और रोचक था। उनके प्रत्येक वाक्यमें अहिंसाकी गूंज थी। उन्होंने उस भाषणमें स्पष्ट बताया कि हिन्दुस्तानका उद्धार अहिंसात्मक संघर्षसे ही हो सकता है। यदि कोई मुझसे इस भाषणके नीचे सही करनेके लिए कहे तो मुझे शायद ही कोई वाक्य या शब्द बदलनेकी जरूरत होगी।

प्रस्तावोंका उनके भाषणके अनुसार होना स्वाभाविक ही था। इससे विषय समितिमें खासा झगड़ा भी हुआ। यहाँतक नौबत आई कि देशबन्धुको इस्तीफा देनेकी बात कहनी पड़ी। परन्तु अन्तमें उनके प्रभावकी जय हुई और परिषद् के महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव निर्विघ्न पास हो गये।

अंजुमनकी सभा

मुसलमान भाइयोंने अलग सभाका[२] आयोजन किया था। उसमें हम दोनों निमन्त्रित थे। इसलिए देशबन्धु, उनकी धर्मपत्नी श्रीमती वासन्ती देवी और मैं वहाँ गये थे। फरीदपुरमें कुछ कटुता फैल रही है। उसके लिए मैंने पंचसे फैसला करानेका सुझाव देकर मुसलमानोंको सलाह दी कि वे परिषद् में शरीक हो जायें। फलतः कोई १०० सज्जन रविवारको सायं परिषद् में आये थे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १०–५–१९२५
  1. बंगाल प्रान्तीय कृषि परिषद्।
  2. यह ३ मई सन् १९२५ को हुई थी।