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१६. भाषण : प्रवर्तक आश्रम, चन्द्रनगरमें

५ मई, १९२५

महात्मा गांधीने कहा कि इस आश्रम में बहुत दिनोंसे आनेकी इच्छा थी, मुझे प्रसन्नता है कि अन्तमें वह पूरी हो गई। उच्च संघके आन्तरिक जीवन और इतिहासके बारेमें निर्मल बाबूसे[१] बहुत-कुछ सुना है। में इसके उच्च आदर्श और उद्देश्यकी हार्दिक सराहना करता हूँ। मुझे बताया गया है कि संघकी आधारशिला आध्यात्मिक जीवनपर रखी गई है। सदस्य आत्मिक ज्ञान और अन्तः प्रेरणाका अनुसरण करते हैं तथा सनातन धर्मके पुरातन अविकल आदर्शके अनुरूप आचरण करते हैं। उनका सिद्धान्त केवल त्याग नहीं है, वह केवल भौतिकताको नकारने का दर्शन भी नहीं है, बल्कि सृष्टिके मूल में ईश्वरका जो आशय है उसे चरितार्थ करनेके लिए जीवनको उसकी समग्रता के साथ स्वीकार करना भी उसमें शामिल है। यह वैदिक धर्म है और इसकी आधारशिला आत्मदर्शन या आध्यात्मिक आत्म-साक्षात्कार है। यह कहना सोलह आने सही नहीं है कि मेरे जीवनका आदर्श इससे सर्वथा भिन्न होने के साथ-साथ अधिकांशतया राजनीतिक है। मैं जो कुछ करता हूँ, मैं कहूँ तो उसमें मेरा आदर्श परमार्थ रहता है। मैं इस अर्थ में सच्चा मुमुक्षु या मोक्षार्थी हूँ कि मैं देश और मानवताकी सेवा और मुक्तिके द्वारा ही अपनी मुक्ति चाहता हूँ। मैं इस बातमें सचमुच ही अध्यात्मवादी हूँ, क्योंकि मेरा उद्देश्य आत्मोत्सर्ग है और मेरा सारा जीवन और कार्य पूरी तौरपर श्रीकृष्ण और भारतमाताके चरणों में अर्पित है। इसलिए मैं जोर देकर कहता हूँ कि मेरा आदर्श प्रवर्तक संघके आदर्शसे किसी प्रकार भी भिन्न नहीं है। अब मैं उस उत्कृष्ट प्रणालीके बारेमें कुछ कहना चाहता हूँ जिसके अन्तर्गत आश्रम में आध्यात्मिक शिक्षा दी जाती है। मुझे इस बातसे प्रसन्नता है कि आपका आदर्श वाक्प स्वावलम्बन है। मेरा विश्वास है कि आर्थिक नींवसे हीन आध्यात्मिकता लँगड़ी है। संघ आध्यात्मिक जीवन तथा आर्थिक तपस्याके बीच जो अद्वितीय सामन्जस्य स्थापित किया है, मैं उसके लिए बधाई देता हूँ।

इसके बाद चरखा और खावीका उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि जब मैं यह जान लूँगा कि संधन मिलावटी सूत का सर्वथा बहिष्कार कर दिया है तब मुझे और भी अधिक प्रसन्नता होगी। अब में जहाँ भी जाऊँगा लोगोंसे जिस प्रकार यह कहूँगा कि आप चन्द्रनगरके प्रवर्तक आश्रम में आध्यात्मिक संस्कृति तथा अनुकरणीय चरित्र-निर्माणके सम्बन्ध में होनेवाले उत्तम कार्यको देखने के लिए जायें, उसी प्रकार मेरी यह कहने की भी लालसा है कि संघ एक आदर्श संस्थाके रूपमें केवल शुद्ध खादीका कार्य कर रहा है।

  1. निर्मलकुमार बसु।