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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


उन्होंने आगे बताया, जब मैं यह देखता हूँ कि भारतके करोड़ों पुत्र और पुत्रियाँ जिन्हें प्रतिदिन एक कौर भोजन भी उपलब्ध नहीं होता, नितान्त कष्ट भोग रहे हैं, तब मेरा हृदय उनके लिए भर-भर आता है। गरीबीके भारसे पीड़ित भारतके इन करोड़ों लोगोंके लिए तथा राष्ट्रव्यापी एकताके लिए मैं खद्दर, हिन्दू-मुस्लिम एकता तथा अस्पृश्यता निवारणके त्रिसूत्री धर्मका उपदेश देता हूँ। यही मेरे लिए व्यावहारिक वेदान्त है, क्योंकि मैं सब में व्याप्त एक आत्मामें विश्वास करता हूँ और अपने जीवनके लिए किसीको भी कोई हानि नहीं पहुँचाऊँगा। यही मेरे अहिंसाके आदर्शका सच्चा अर्थ है। मैं आप लोगों से आग्रह करता हूँ कि आप कातें, बुने और खद्दर पहनें, क्योंकि भारतके करोड़ों लोगोंके लिए स्वराज्य प्राप्त करनेका एकमात्र साधन मुझे यही दीख पड़ा है।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, ८–५–१९२५
 

१७. भाषण : अष्टाङ्ग आयुर्वेद विद्यालयके शिलान्यास-समारोहमें

कलकत्ता
६ मई, १९२५

मित्रो,

मैंने इस महान संस्थाके शिलान्यासके निमन्त्रणको अत्यन्त संकोच के साथ स्वीकार किया है। आप जानते हैं कि कुछ वर्ष पहले मैंने तिब्बिया कालेजका[१] उद्घाटन किया था, जिसके कर्त्ता-धर्त्ता मेरे सम्मानित मित्र और बन्धु हकीम अजमलखाँ थे। उस अवसरपर मुझे काफी संकोच हुआ था। किन्तु मैं उस निमन्त्रणको अस्वीकार नहीं कर सका था, क्योंकि वह मुझे मेरे एक अन्तरंग मित्रने दिया था। इसी प्रकारका निमन्त्रण मेरे एक दूसरे अन्तरंग मित्रने जब मेरे पास भेजा, तो उसे भी मैं अस्वीकार नहीं कर सका। किन्तु यदि मैं चिकित्सा पद्धतियोंके, खास तौरपर आयुर्वेदिक और यूनानी पद्धतियोंके, बारेमें और आम तौरपर चिकित्सकोंके पेशके बारेमें अपने हार्दिक विचार व्यक्त न करूँ तो वह मेरे अपने साथ तथा यहाँ उपस्थित लोगोंके साथ ईमानदारी नहीं होगी। मैंने पहले-पहल १९०८ में इस चिकित्सा पद्धति और पेशेके बारेमें अपने विचार व्यक्त किये थे।[२] मैंने उस समय जो कुछ लिखा था उसमें इतने वर्ष बीत जानेपर भी, मैं एक शब्दतक नहीं बदल पा रहा हूँ। इसमें कोई सन्देह नहीं कि १९०८ में मैंने जो कुछ लिखा था वह संक्षिप्त था। वह इस विषयका सरसरी तौरपर किया गया

  1. देखिए खण्ड १९, पृष्ठ ३६० ३६२।
  2. यहाँ १९०९ होना चाहिए। देखिए खण्ड १०, हिन्द स्वराज्य।