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पत्र : रवीन्द्रनाथ ठाकुरको

आनन्द आता है। इस चरखा प्रतियोगितामें कोई १८० कातनेवालोंने भाग लिया होगा। मैं नहीं समझता कि भारतके दूसरे किसी प्रान्तमें उच्च मध्यम वर्गके इतने स्त्री-पुरुष ऐसी प्रदर्शनीमें भाग ले सकते हैं और ऐसी कुशलतासे सूत कात सकते हैं। यहाँ मैं यह बात भी कह देता हूँ कि बहुतसे स्वराज्यवादी भी खुद नियमपूर्वक और उमंगसे सूत कातते हैं। मैं फरीदपुरमें पक्के स्वराज्यवादी बाबू सुरेश विश्वासकी पत्नीका अतिथि हूँ। वे बहुत बारीक सूत कातती हैं। वे और उनके बच्चे चरखेके बहुत प्रेमी हैं। वे अपना सारा फुरसतका वक्त सूत कातनेमें लगाती हैं। परन्तु मुझसे कहा गया है कि अभी मैं अपनी इस यात्रामें, जो वस्तुतः आज ही आरम्भ होती है (मैं ये टिप्पणियाँ कलकत्तामें ७ मईको लिख रहा हूँ), बंगालके खादीकार्यके और भी बढ़िया नमूने देखूँगा। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यदि बंगाल चाहे तो और अनेक बातोंकी तरह खादीमें भी सबसे आगे बढ़ सकता है। उसके पास बुद्धि है, उत्कृष्ट कल्पनाशक्ति है, कवित्व शक्ति है, उसका आत्मत्याग भी महान है, उसमें आवश्यक कौशल भी है और उसके पास साधन-सामग्री भी है। क्या वह इन सब गुणोंके साथ खादी कार्य करनेको इच्छाका भी योग करेगा? परमात्मा उसे ऐसी इच्छा दे।[१]

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १४–५–१९२५
 

२२. पत्र : रवीन्द्रनाथ ठाकुरको

कलकत्ता
७ मई, १९२५
प्रिय गुरुदेव,

सुनीति देवी कहती हैं कि वे आपके ६४वें जन्म-दिवस समारोह में भाग लेनेके लिए बोलपुर जा रही हैं। कल आपके स्वास्थ्य और दीर्घजीवनके लिए जो शुभ कामनाएँ और प्रार्थनाएँ आपको भेजी जायेंगी, उनमें मैं अपनी भी प्रार्थनाएँ जोड़ देना चाहता हूँ।

एन्ड्रयूजने अपने एक पत्रमें लिखा है कि आपका स्वास्थ्य अच्छा नहीं है। आशा है कि अब कमजोरी दूर हो गई होगी और आप पहलेसे अच्छे होंगे।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

सर रवीन्द्रनाथ ठाकुर
शान्तिनिकेतन
अंग्रेजी पत्र ( जी॰ एन॰ ४६२८) की फोटो-नकलसे।
  1. इसके बादकी दो टिप्पणियाँ यहाँ उद्धृत नहीं की गई। देखिए "सर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी", १७-५ १९२५।