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२३. भाषण : बुद्ध जयन्तीके अवसरपर[१]

कलकत्ता
७ मई, १९२५

मित्रो,

इस सेवाको निभाना मेरे लिए अब एक सुखद कर्त्तव्य है। मैं इस सभा में पढ़े गये विवरण के बारेमें कुछ नहीं कहूँगा। डा॰ धर्मपालने[२] इस सेवा कार्यको एक कारुणिक पुट दे दिया है। उन्होंने मेरे कन्धोंपर एक ऐसा भार डाल दिया है जिसे वहन करनेके लिए मैं अपने आपको अनुपयुक्त मानता हूँ। गत वर्ष जब मैं स्वास्थ्य-लाभ कर रहा था श्री नटराजनने मुझे जयन्ती समारोहके[३] अवसरपर अध्यक्षता करनेके लिए कहा था, तब मुझे संकोच हुआ था; परन्तु मैं श्री नटराजनका अनुरोध अस्वीकार न कर सका, क्योंकि उनसे मेरा अत्यधिक गहरा प्रेम है। मैंने तभी समझ लिया था कि प्रतिवर्ष भारतके किसी न किसी भागमें ऐसे समारोह होते ही रहते हैं और उनमें भाग लेनेके लिए सम्भवतः मुझे निमन्त्रित किया ही जायेगा। मैं कलकत्ता आया तो फिर वैसा ही हुआ। यह एक बहुत ही विचित्र बात है कि संसारके प्रायः सभी महान धर्मोंके मतावलम्बी कहते हैं कि मैं उनका अपना हूँ। जैन मुझे जैन समझने की भूल करते हैं। सैकड़ों बौद्ध भाई समझते हैं कि मैं बौद्ध हूँ। सैकड़ों ईसाई अब भी यही मानते हैं कि मैं ईसाई हूँ; और कुछ ईसाई मित्र तो परोक्ष रूपसे मुझपर कायर होनेका दोष मढ़ते भी नहीं हिचकते, वे कहते हैं, "हम जानते हैं कि आप ईसाई हैं, किन्तु आप यह स्वीकार करनेसे डरते हैं। आप साहसके साथ खुले आम यह क्यों नहीं कह देते कि आप ईसा और उसके द्वारा मुक्तिमें विश्वास रखते हैं? मेरे अनेक मुसलमान मित्रोंका खयाल है कि यद्यपि मैं अपनेको मुसलमान नहीं कहता फिर भी व्यवहारतः मैं मुसलमान हूँ। और कुछ मुसलमान मित्र सोचते हैं कि मैं इस्लाम अपनानेकी राहपर हूँ और इस्लामके बहुत ही निकट आ गया हूँ, हालाँकि अभी काफी कसर है। यह मेरे लिए बड़ी ही तारीफकी बात है और इसे मैं अपने प्रति उनके स्नेह और आदरभावका ही प्रतीक समझता हूँ। किन्तु मैं स्वयं अपनेको एक तुच्छतम हिन्दू समझता हूँ और मैं जितनी ही गहराईसे हिन्दूधर्मका अध्ययन करता हूँ उतना ही मेरा यह विश्वास दृढ़ होता जाता है कि हिन्दू धर्म विश्वके समान व्यापक है और संसारमें जो-जो बातें अच्छी हैं उन सबको वह अपने

  1. यह भाषण महाबोधि सोसाइटीके तत्त्वावधानमें बौद्ध विहार में आयोजित "बुद्ध जयन्ती" समारोहके अध्यक्षपदसे दिया गया था।
  2. सोसाइटीके महामन्त्री; बुद्धके उपदेशों और बुद्धका कार्य बंगालमें किस प्रकार चलाया जा रहा है इसके सम्बन्धमें वे पहले बोल चुके थे।
  3. देखिए खण्ड २४, पृष्ठ ८७-८९।